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प्रमाण के भेद * तवेधा |2.11
- परीक्षामुख - वह प्रमाण दो प्रकार का है। * प्रत्यक्षेतरभेदात् ।2.21 - 'प्रत्यक्ष' और इतर अर्थात् ‘परोक्ष' के भेद से प्रमाण दो प्रकार का है। * विशदं प्रत्यक्षम् ।2.3। - विशद अर्थात् निर्मल-स्पष्ट ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं। * प्रतीत्यन्तराव्यवधानेन विशेषवत्तया वा प्रतिभासनं वैशधम्।2.41 - दूसरे ज्ञान के व्यवधान से रहित और विशेषता से होनेवाले प्रतिभास को वैशद्य कहते हैं। अर्थात् अन्य ज्ञान के व्यवधान से रहित जो निर्मल, स्पष्ट और विशिष्ट ज्ञान होता है उसे विशद या वैशद्य कहते हैं। * परोक्षमितरत् ।3.1। - जो प्रत्यक्ष से इतर अर्थात् भिन्न है वह परोक्ष (प्रमाण) है। * अविशदप्रतिभासं परोक्षम्।3.1। - न्यायदीपिका, श्री धर्मभूषण यति - अविशद, अस्पष्ट, अनिर्मल ज्ञान को परोक्ष (प्रमाण) कहते हैं।
- आलापपद्धति
नय के भेद * तावन्मूलनयौ द्वौ निश्चयो व्यवहारश्च। - मुख्यतया नय के दो प्रकार से भेद बताये गये हैं - 1. निश्चयनय और 2. व्यवहारनय। वस्तुतः वस्तु अनन्तधर्मात्मक है अतः नय भी अनन्त हैं।