Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 67
________________ जैनविद्या 24 श्री जयसिंह-राज्ये श्रीमद्धारा-निवासना परापरपरमेष्ठि प्रणामोपमाजितमलं पुण्य निराकृताखिलकलंकेन प्रभाचन्द्रं महापुराण टिप्पणस्य शतत्रयाधिक सहस्रत्रयं (3300) परिमाणं । 9. इन्हीं प्रभाचन्द्राचार्य की 'क्रियाकलाप टीका' व्याख्या ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, बम्बई के शास्त्र भण्डार में विद्यमान है। इसकी अन्तिम प्रशस्ति निम्न प्रकार है - 'बन्दे मोहतमे विनाशन पटुस्त्रैलोक्यदीपप्रभुः, सं सद्गतिं समन्वितस्य निखलं स्नेहस्यं संशोधकः शोधका सिद्धान्ताहि समस्त शास्त्रकिरणः श्री पदमनंदी प्रभुः, तच्छिष्यात् प्रकटार्थतां स्तुति पदं प्राप्तं प्रभाचन्द्रतः। 23 __ श्री माणिक्यनन्दि (परीक्षामुख) के रचयिता प्रभाचन्द्राचार्य के विद्यागुरु तथा पद्मनंदी सैद्धान्तिक दीक्षागुरु थे। इन कृतियों के अतिरिक्त 10. समाधितंत्र टीका 11. रत्नकरण्डश्रावकाचार टीका 12. आत्मानुशासन तिलक टीका 13. स्वयंभूस्तोत्र टीका। __14. पंचास्तिकाय प्रदीप आदि कृतियाँ टोडारायसिंह (राजस्थान) के नेमिनाथ मंदिर में सं. 1605 की लिखी विद्यमान हैं पर यह प्रामाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता कि ये इन्हीं प्रभाचन्द्र की हैं अथवा किसी अन्य प्रभाचन्द्र की। शोधकर्ताओं के समक्ष एक प्रमुख कार्य है कि वे शोध करके इसका निर्णय करें। उपर्युक्त ग्रन्थों के कर्ता प्रभाचन्द्राचार्य को प्रकृति के प्रति बड़ा अनुराग है। उन्होंने सूर्य, चन्द्र, कमल कमलिनी-वाचक पर्यायवाची शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है। कमलमार्तण्ड, कुमुदचन्द्र, अम्भोज भास्कर, सरोज भास्कर आदि शब्द प्रकृति-प्रेम को दर्शानेवाले हैं। आचार्य प्रभाचन्द्र की प्रशस्तियाँ हम यहाँ विस्तार से नहीं दे पा रहे हैं अतः जिज्ञासु पाठक श्री जुगलकिशोरजी मुख्तार द्वारा संपादित 'जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह' के निम्न पृष्ठों पर देखें, जैसे - 1. शब्दाम्भोज भास्कर की प्रशस्ति, पृ. 143 2. तत्त्वार्थवृत्ति पद प्रशस्ति, पृ. 160 3. पंचास्तिकाय प्रदीप प्रशस्ति, पृ. 201

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