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जैनविद्या 24
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12. बारहवें ‘प्रभाचन्द्र' ज्ञानभूषण के शिष्य थे। सुमतिकीर्ति द्वारा विरचित 'धर्मपरीक्षारास' में इनका उल्लेख है।
तस पट्टे पट्टोधर ज्ञानभूषण गुरुराय । आचारिज पद आपयु तेहना प्रणमूं पाय ।।
तेह कुलकमल दिवसपति प्रभाचन्द्र यतिराय। इनका उल्लेख त्रैलोक्यसार-रास में भी है, एक पट्टावली में भी इनका उल्लेख है।"
13. तेरहवें 'प्रभाचन्द्र' आचार्य पद्मनंदी के शिष्य हैं जिन्होंने 'श्रावकाचार सारोद्धार' नामक ग्रन्थ रचा है, इनकी दूसरी रचना 'वर्द्धमानचरित्र' नामक ग्रन्थ है। इसकी फागुन वदी सप्तमी (7) की एक प्रति सूरत के गोपीपुरा मंदिर में तथा ईडर के शास्त्र भंडार में विद्यमान है। यथा -
अहंकार स्फारी भव दमित वेदान्त विबुधोःल्लसत्सिद्धान्त श्रेणी क्षपण-निपुणोक्ति द्युतिभरः अधीती जैनेन्द्रऽजनि रजनिनाथ-प्रतिनिधिः
प्रभाचन्द्रः सान्द्रोदयशमितापद्यतिवरः ।।2।।" 14. चौदहवें 'प्रभाचन्द्र' भट्टारक वादिराज के शिष्य थे जिन्होंने 'ज्ञान सूर्योदय' नामक नाटक माघ सुदी 8 सं. 1648 को मधूक नगर में रचा था। यथा -
तत्पट्टामल भूषणं समभवद् दैगम्बरीये मते ।
चंचद्वर्हकरः स भाति चतुरः श्री मत्प्रभाचंद्रमा ।। __15. पन्द्रहवें 'प्रभाचन्द्र' को ब्र. श्रुतसागर ने मुक्तावली व्रत-कथा के प्रथम मंगलाचरण में नमस्कार किया है। यथा -
प्रभाचन्द्राऽकलंकेष्टविद्यानन्दीडितक्रमाम्।
जीवन्मुक्तावलीं नत्वा वक्ष्ये मुक्तावली व्रतम् ।।1।। 16. सोलहवें 'प्रभाचन्द्र' वे थे जो भट्टारक जिनचन्द्र के पद पर प्रतिष्ठित हुए थे। इनके शिष्य का नाम धर्मचन्द्र था। पण्डित जिनदास ने 'होलीरेणुका चरित्र' की प्रशस्ति में सं. 1608, ज्येष्ठ सुदी 10, शुक्रवार को उपर्युक्त ग्रन्थ के अन्त में प्रभाचन्द्र का नाम दिया है। यथा -