Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 15
________________ जैनविद्या 24 11. समाधितंत्र टीका - यह मूल ग्रंथ संस्कृत भाषा में 105 श्लोक में निबद्ध है। इसके मूलकर्ता आचार्य पूज्यपाद हैं जिनका अपर नाम देवनन्दि है। इसकी सुगम टीका आचार्य प्रभाचन्द्र ने की है। सारे छंद वैराग्यपूर्ण एवं आत्मा-विषयक हैं। बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा का स्वरूप भी आगम-सम्मत है। टीका सरल संस्कृत गद्यात्मक है। 12. आत्मानुशासन टीका - इसके मूलकर्ता आचार्य गुणभद्र हैं। इन्होंने महापुराण और जयधवला का अधूरा काम पूरा किया। ये आचार्य जिनसेन के पट्ट शिष्य थे। आत्मानुशासन संस्कृत भाषा में शार्दुलविक्रीडित, वसन्ततिलका, पृथ्वी, अनुष्टप, आर्या आदि विभिन्न छन्दों में रचा गया है। अध्यात्म-प्रेमी होने से आचार्य प्रभाचन्द्र ने अध्यात्म ग्रंथों की भी टीका की है। 13. शाकटायन न्यास - शाकटायन एक विश्रुत जैन वैयाकरण हुए हैं। ग्रंथकर्ता ने पाणिनी और जैनेन्द्र व्याकरण के अनुरूप ही 3200 सूत्र-प्रमाण व्याकरण की रचना की है। इसी पर आचार्य प्रभाचन्द्र ने सरल एवं सुगम न्यास लिखा है। न्यास एक प्रकार की टीका ही है। ___ 14. क्रियाकलाप - ग्रंथ एक संकलित रचना है। इसे पण्डित पन्नालालजी सोनी शास्त्री ने संकलित किया है। इसमें सिद्ध भक्ति, आचार्य भक्ति आदि भक्तियों, सामायिक पाठ तथा साधु एवं श्रावकों के करने योग्य क्रियाओं का संकलन है। पन्नालालजी ने लिखा है कि इस संकलन में जो प्राकृत भाग है वह आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा भक्ति के रूप में रचा गया है तथा सामायिक पाठ, जो आचार्य पूज्यपाद द्वारा रचे गये हैं उनकी टीका आचार्य प्रभाचन्द्र की जान पड़ती है। सामायिक पाठों में सर्वप्रथम णमोकार एवं चत्तारि मंगलादि पाठ पढ़ा जाता है, उसकी संस्कृत टीका बड़ी सुन्दर है, गद्यात्मक है, वह आचार्य प्रभाचन्द्र की ही जान पड़ती है। 15. गद्यात्मक कथाकोष - ईस्वी सन् 950 से सन् 1020 के बीच वृहत संस्कृत श्लोकबद्ध कथा की रचना आचार्य हरिषेण ने की थी। इसमें 157 कथायें निबद्ध हैं। यथासंभव इसी रचना से प्रभावित होकर आचार्य प्रभाचन्द्र ने गद्यात्मक कथा-कोष की रचना की हो। यह एक गद्यात्मक शास्त्रसम्मत तथा पुराणसम्मत ग्रंथ है। भाषा-शैली सरल संस्कृत है। इस प्रकार आचार्य प्रभाचन्द्र के द्वारा रचित 13 टीकाग्रंथ एवं दो ग्रंथ स्वोपज्ञ हैं। अर्थात् 'न्यायकुमुदचन्द्र' और 'गद्य कथाकोष' ये दो मौलिक रचनायें हैं, शेष 13

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