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जैनविद्या 24
किया, जैसे - प्रमेयकमलमार्तण्ड, प्रवचनसार सरोज भास्कर, शब्दाम्भोज भास्कर एवं न्यायकुमुदचन्द्र आदि। यह उनकी कल्पना शक्ति की विलक्षणता है। परिचय
___ निःस्पृही जैनाचार्यों की कृतियाँ ही उनका परिचय बनती हैं। जैनाचार्य स्वपरिचय देने की भावना से विरत रहे। इस कारण उनका विस्तृत परिचय प्राप्त करना सम्भव नहीं होता। उनकी रचनाओं में उनके गुरु-शिष्य एवं राजाओं के नाम या शिलालेखों में उनका उल्लेख अवश्य मिलता है, जिससे उनका संक्षिप्त परिचय प्राप्त हो जाता है। आचार्य प्रभाचन्द्र इसके अपवाद नहीं हैं। वे मूल संघ के अन्तर्गत स्थापित नन्दिगण की आचार्य परम्परा में दक्षिण भारत में उत्पन्न हुए थे। आचार्य प्रभाचन्द्र ने 'प्रमेयकमलमार्तण्ड', 'न्यायकुमुदचन्द्र' आदि की प्रशस्ति में 'पद्मनन्दि सिद्धान्त' को अपना गुरु लिखा है। श्रवणबेलगोला के शिलालेख क्रमांक 40 में गोल्लाचार्य के शिष्य पद्मनन्दि सैद्धान्तिक का उल्लेख है। इसी शिलालेख में प्रथित तर्क ग्रन्थकार और शब्दाम्भोरुह भास्कर प्रभाचन्द्र का शिष्य रूप से उल्लेख किया है। ये दोनों विशेषण यह बताते हैं कि आचार्य प्रभाचन्द्र 'न्यायकुमुदचन्द्र' और 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' जैसे तर्कग्रन्थों के सृजक होने के साथ ही 'शब्दाम्भोज भास्कर' नामक जैनेन्द्र न्यास के भी सृजक थे। इस शिलालेख में पद्मनन्दि सैद्धान्तिक को ‘अविरुद्धकरण' और 'कौमार देवव्रती' लिखा है। इससे यह व्यक्त होता है कि पद्मनन्दि सैद्धान्तिक ने कर्णवेध होने के पहिले ही जिनेश्वरी दीक्षा धारण करली होगी और इसीलिए वे 'कौमार देवव्रती'' कहे जाते थे। इस प्रकार मूल संघ के अंतर्गत नंदिगण के प्रभेदरूप देशीगण के श्री गोल्लाचार्य के शिष्य आचार्य पद्मनन्दि थे, उनके प्रशिष्य आचार्य प्रभाचन्द्र थे। प्रभाचन्द्र के सधर्मा मुनि श्री कुलभूषण थे। कुलभूषण मुनिराज भी सिद्धान्त शास्त्रों के पारगामी और चारित्र सागर थे। इस शिलालेख में मुनि कुलभूषण की शिष्य- परम्परा का वर्णन है, जो दक्षिण देश में हुई थी।
आचार्य प्रभाचन्द्र दीक्षागुरु से दीक्षा-शिक्षा लेकर उत्तर भारत की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी धारा-नगरी में चले आये। कहते हैं कि यहीं पर आप आचार्य माणिक्यनन्दि के सम्पर्क में आये। आचार्य प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रशस्ति में 'गुरुः श्री नन्दिमाणिक्यो नन्दिताशेषसज्जनः' (श्लोक 3) कहकर उन्हें गुरु रूप में स्मरण किया है। यह उल्लेखनीय है कि (स्व.) पण्डित महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य ने इस विषय में