Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 54
________________ जैनविद्या 24 45 'श्री जयसिंहदेव राज्ये' लिखा है। गद्य कथाकोष और प्रभाचन्द्र-कृत न्यायकुमुदचन्द्र आदि के प्रशस्ति-श्लोकों में पूर्ण सादृश्य है। इससे यह प्रकट होता है कि गद्य कथाकोष आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा ही रचित है। यह उल्लेखनीय है कि ग्रन्थ-समाप्ति के बाद भी कुछ कथाएँ लिखी हैं। और अन्त में 'सुकोमलै सर्वसुखावबोधैः' श्लोक तथा 'इति भट्टारक प्रभाचन्द्रकृतः कथाकोष समाप्तः' यह पुष्पिका लेख है। ऐसा लगता है कि प्रभाचन्द्र ने प्रारंभ की 89 कथाएँ ही बनाई हों और बाद की कथाएँ किसी दूसरे भट्टारक प्रभाचन्द्र ने रची हों। इस सम्बन्ध में अनुसंधान अपेक्षित है। 11. समाधितंत्र टीका - आचार्य पूज्यपाद-कृत 'समाधितंत्र' अध्यात्म विषयक सुन्दर रचना है, इसमें 105 पद्य हैं। इसकी विषय-वस्तु आचार्य कुन्दकुन्द के पंच परमागम के ग्रन्थों से ग्रहण की गयी है। इसके अनेक पद्य आचार्य कुन्दकुन्द-कृत पद्यों के रूपान्तरण जैसे प्रतीत होते हैं। इसमें बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के स्वरूप का विस्तृत विवेचन कर शुद्धात्मा/परमात्मा होने का उपाय दर्शाया है। आचार्य प्रभाचन्द्र ने इस अध्यात्मपरक ग्रन्थ पर अपनी लेखनी चलाकर अपने बहुआयामी व्यक्तित्व को प्रदर्शित किया है। इसकी रचना-शैली और न्यायकुमुदचन्द्र की शैली समान है जो इस बात का सूचक है कि यह टीका भी आचार्य प्रभाचन्द्र-कृत है। आचार्यकल्प पण्डित जुगलकिशोर मुख्तार इन्हें किसी अन्य प्रभाचन्द्र की मानते हैं जो पुष्ट प्रमाणों से सिद्ध नहीं होता। ___12. रत्नकरण्ड श्रावकाचार टीका - आचार्य समन्तभद्र-कृत 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' चरणानुयोग की महत्त्वपूर्ण रचना है जिसमें 150 पद्यों में सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र का स्वरूप बताते हुए सल्लेखना को श्रावक के व्रतों में सम्मिलित करते हुए श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन है। व्यक्ति को नैतिक धरातल में प्रतिष्ठित करा उसे धार्मिक जीवनयापन के सुखी होने की विधि इस ग्रन्थ में दर्शायी है। आचार्य समन्तभद्र ने अपनी सर्वोदयी विचारणा के अनुरूप सम्यग्दर्शन-युक्त चाण्डाल को देव-समान घोषित किया है। साथ ही मोही मुनि से निर्मोही गृहस्थ श्रेष्ठ बताया है। आचार्य प्रभाचन्द्र ने आचार विषयक इस ग्रन्थ पर टीका लिखी। रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका तथा समाधितंत्र की टीका में प्रमेयकमल मार्तण्ड आदि में प्रयुक्त विशिष्ट शैली की समानता यह सूचित करता है कि ये टीकाएँ भी प्रसिद्ध दर्शनिक प्रभाचन्द्र द्वारा रचित हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रभाचन्द्र-कृत गद्य कथा कोष में वर्णित अंजन चोर आदि की कथाओं से रत्नकरण्ड टीका की कथाओं का सदृश्यपना

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