Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 56
________________ जैन विद्या 24 हो गये । उस काल के जिनमन्दिर, आगम आदि भी काल-प्रवाह में मिट गये या किसी वास्तुविद के ज्ञान के शिकार हो गये। इसके साथ ही उनके निर्माताओं की उदात्त भावनाएँ भी हिंस भावनाओं में लुप्त हो गयी। किन्तु वीतराग मार्ग में निष्ठापूर्वक समर्पित व्यक्तित्व इहलोक में स्वतः अमरता को प्राप्त हैं, जैसे आचार्य कुन्दकुन्द, आचार्य प्रभाचन्द्र आदि । जड़ के ऊपर चैतन्य शक्ति की यही विशिष्टता है । इसी कारण जिनेश्वरी दीक्षा भी लोक में गौरव को प्राप्त है। ज्ञानी भव्यजन इस रहस्य को समझते हैं । 1. डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ, भाग - 4, पृष्ठ 383-386 के आधार पर संकलित । 2. डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ, 4.180 । 3. जैन साहित्य का इतिहास, द्वितीय भाग, पृष्ठ 347। 4. पाटोदी मंदिर, जयपुर की प्रति । DOD 47 बी - 369, पो. ऑ. - ओ. पी. एम. कॉलोनी, अमलाई पेपर मिल्स, अमलाई (म.प्र.)

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