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न्याय * निश्चितं च निर्बाधं च वस्तुतत्त्वमीयतेऽनेनेति न्यायः।
- न्यायविनिश्चयविवरण, भाग-1 - जिसके द्वारा वस्तु का निश्चित और निर्बाध ज्ञान होता है उसे 'न्याय कहते हैं। अर्थात् जिसके द्वारा वस्तु-स्वरूप का सम्यक् ज्ञान हो उसे 'न्याय' कहते हैं।
* नय-प्रमाणात्मिका युक्तिया॑यः।
- - प्रमेयरत्नमाला, पृ. 4. टिप्पणी
* प्रमाण-नयात्मको न्यायः। - न्याय प्रमाण और नय रूप है (क्योंकि वस्तुस्वरूप का सम्यक् ज्ञान प्रमाण और नय के द्वारा होता है।)
* प्रमाणनयैरधिगमः।1.6।
- तत्वार्थसूत्र
- प्रमाण और नयों से पदार्थों का ज्ञान होता है।
परीक्षामुख - यह जैन न्याय-जगत का प्रथम सूत्रग्रन्थ है। इसके रचनाकार हैं आचार्य माणिक्यनन्दि (11वीं शती)। आचार्य लघु अनन्तवीर्य (12वीं शती) ने ‘परीक्षामुख' की टीका की जो 'प्रमेयरत्नमाला' नाम से प्रसिद्ध है। इस परीक्षामुख' पर ही आचार्य प्रभाचन्द्र ने 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' नाम की एक बृहद् टीका लिखी।