Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 49
________________ 40 . जैनविद्या 24 पण्डितप्रवर डॉ. महेन्द्रकुमारजी जैन न्यायाचार्य अतिश्रमसाधनापूर्वक 78 पृष्ठीय विस्तृत प्रस्तावनासहित सम्पादन कर इस ग्रन्थ की गूढ-गम्भीरता प्रकाश में लाए। डॉ. साहब ने इस प्रस्तावना में पचास से अधिक वैदिक दार्शनिकों, बौद्ध दार्शनिकों, दिगम्बर-श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थ एवं ग्रन्थकारों के उद्धरणों की समीक्षा कर आचार्य प्रभाचन्द्र के कर्तृत्व को गौरवान्वित किया है। 2. न्यायकुमुदचन्द्र - आचार्य प्रभाचन्द्र ने भट्ट अकलंकदेव कृत 'लघीयस्त्रय' और उसकी स्वोपज्ञविवृत्ति की विस्तृत एवं विशद व्याख्या 'न्याय-कुमुदचन्द्र' नामक रचना में की है। प्रमेयकमलमार्तण्ड के अनुरूप न्याय-कुमुदचन्द्र भी न्यायरूपी कुमुदों का विकास करने के लिए चन्द्रमा के समान है। इसकी रचना राजा भोज के पुत्र श्री जयसिंह देव के राज्यकाल में धारानगरी में हुई। इसका आकार बीस हजार श्लोक-प्रमाण है। लघीयस्त्रय में कुल 78 कारिकाएँ हैं और तीन प्रवेश हैं - 1. प्रमाण प्रवेश, 2. नय प्रवेश, 3. प्रवचन प्रवेश। प्रमाण प्रवेश में 4 परिच्छेद हैं - 1. प्रत्यक्ष परिच्छेद, 2. विषय परिच्छेद, 3. परोक्ष परिच्छेद, 4. आगम परिच्छेद। नय प्रवेश में एक और प्रवचन प्रवेश में दो परिच्छेद हैं। इस प्रकार लघीयत्रय के व्याख्याकार ने कुल सात परिच्छेदों पर न्यायकुमुदचन्द्र व्याख्या लिखी है। प्रवचन प्रवेश में जहाँ तक प्रमाण और नय का वर्णन है वहाँ तक प्रभाचन्द्र ने छठा परिच्छेद तथा निक्षेप के वर्णन को सातवाँ परिच्छेद माना है। आचार्य प्रभाचन्द्र ने भारतीय दर्शन के समग्र तर्क साहित्य एवं प्रमेय साहित्य का मंथन कर बोधगम्य शैली में उसका सार न्यायकुमुदचन्द्र में प्रस्तुत किया है। उन्होंने वात्स्यायन, उद्योतकर आदि वैदिक दार्शनिकों और धर्मकीर्ति आदि बौद्ध दार्शनिकों के मतों का निराकरण उनके ग्रन्थों के आधार पर अपनी विलक्षण तार्किक शैली में निष्पक्ष रूप से किया है और जैन-दार्शनिकों के मत की पुष्टि की है। व्याख्या में प्रकरण से सम्बन्धित अन्य विषयों की पूर्व-उत्तर पक्ष के रूप में चर्चा की है। इसकी भाषा ललित एवं निर्बाधप्रवाह है। प्रभाचन्द्र ने मर्मज्ञ व्याख्याकार अनन्तवीर्य और विद्यानन्दि का अनुसरण करने का प्रयास किया है। प्रमेयकमलमार्तण्ड की रचना के बाद प्रभाचन्द्र के मानस में जो नवीन-नवीन युक्तियाँ आयीं उनका निर्देश न्यायकुमुदचन्द्र में किया है और पुनरावृत्ति टालने हेतु प्रमेयकमलमार्तण्ड का संदर्भ दे दिया। न्यायकुमुदचन्द्र में प्रभाचन्द्र ने अपने स्वतंत्र प्रबन्धनों में बहुत-सी मौलिक बातें दर्शायीं, जैसे - वैभाषिक-सम्मत प्रतीत्यसमुत्पाद का खंडन,

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