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जैनविद्या 24
प्रभाचन्द्र के प्रमेयकमलमार्तण्ड' की प्रशस्ति इस प्रकार है - श्री भोजदेवराज्ये .... श्रीमत्प्रभाचन्द्र पण्डितेन ........ विवृतमिति'।
उक्त प्रशस्ति एवं उक्त शिलालेख नं 55 में ‘पण्डित' शब्द का उपयोग यह सूचित करता है कि वे गृहस्थ थे; परन्तु आराधना गद्य कोष की 89वीं कथा में, ग्रन्थान्त में तथा प्रशस्ति में 'भट्टारक' लिखा है। अतः जान पड़ता है कि ये जीवन के उत्तर काल में मुनि हुए होंगे। .. समय-निर्णय
___ आचार्य प्रभाचन्द्र के समय के सम्बन्ध में कई मान्यताएँ प्रचलित हैं। श्री पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री ने न्यायकुमुदचन्द्र प्रथम भाग की प्रस्तावना में इनका समय ई. 950 से 1020 निर्धारित किया है। श्री पण्डित डॉ. महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य ने प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रस्तावना में इनका समय ई. 980 से 1065 तक निर्धारित किया है। श्री पण्डित डॉ. दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य ने 'जैन न्याय की भूमिका' में इनका समय 1043 ई. लिखा है। इन तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रभाचन्द्र का समय विक्रम सम्वत् की 11वीं शताब्दी रहा है। राजा भोज का भी यही समय है। प्रभाचन्द्र की विशिष्टता
आचार्य प्रभाचन्द्र विशिष्ट प्रतिभा के धनी थे। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान, दार्शनिक और सिद्धान्त-शास्त्रों के ज्ञाता थे। उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र
जैसी प्रमेय-बहुल कृतियों की रचना कर जैन-जैनेतर दर्शन पर अपनी विशिष्टता एवं प्रमाणिकता सिद्ध की है। उन्होंने किसी भी विषय का समर्थन या खण्डन प्रचुर युक्तियों सहित किया है। वे तार्किक, दार्शनिक और सहृदय व्यक्तित्व के धनी रहे हैं। जैनागम की सभी विधाओं पर उनका पूर्ण अधिकार था। प्रभाचन्द्र का ज्ञान गम्भीर और अगाध था। स्मरण-शक्ति भी तीव्र थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में पूर्ववर्ती जैनाचार्यों के अलावा भारतीय दर्शन के अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ वेद, उपनिषद्, स्मृति, पुराण, महापुराण, वैयाकरण, सांख्य-योग, वैशेषिक-न्याय, पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा, बौद्ध दर्शन एवं श्वेताम्बर ग्रन्थों आदि सैकड़ों ग्रन्थों के उद्धरण, सूक्तियाँ देकर अपने अगाध वैदुष्य का परिचय दिया है। माघ कवि के शिशुपालवध महाकाव्य, महाकवि वाणभट्ट की कादम्बरी, बौद्धाचार्य अश्वघोष के सौन्दरनन्द महाकाव्य एवं याज्ञवल्क्य स्मृति आदि के अनेक उद्धरण आपने