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जैनविद्या 24
जयतु प्रभेन्दुसूरिः प्रमेयकमलप्रकाण्डमार्तण्डेन । यद्वदननिस्सृतेन प्रतिहतमखिलं तमो हि बुधवर्गाणाम् ।।
माणिक्यनन्दिरचितं क्वनुसूत्रवृन्दं क्वाल्पीयसी मम मतिस्तु तदीय भक्त्या । तादृक् प्रभेन्दुवचसां परिशीलनेन ।
कुर्वे प्रभेन्दुमधुना बुधहर्षकन्दम् ।। पण्डित प्रभाचन्द्र की कृति 'शब्दाम्भोजभास्कर' अपरनाम 'शब्दाम्भोरुहभास्कर' के अब तीन-साढ़े तीन अध्याय उपलब्ध बताये जाते हैं। यह कृति देवनन्दि पूज्यपाद (464-524 ई.) के व्याकरण ग्रन्थ 'जैनेन्द्र महान्यास' पर आधारित बताई जाती
'तत्त्वार्थवृत्तिपद' गृद्धपिच्छाचार्य उमास्वाति (40-90 ई.) के . 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्र' पर देवनन्दि पूज्यपाद की तत्त्वार्थवृत्ति' के विषम पदों का संक्षिप्त अर्थसूचक टिप्पण ग्रन्थ है।
न्यायकुमुदचन्द्र' भट्ट अकलंकदेव (625-675 ई.) द्वारा प्रमाणप्रवेश, नयप्रवेश और प्रवचनप्रवेश नामक न्याय विषयक तीन प्रकरणों को लेकर रची गई कृति 'लघीयस्त्रय' और उसकी स्वोपज्ञविवृत्ति (स्वरचित टीका) पर रचा गया न्यायविषयक विशद व्याख्यान है। ग्रन्थ का पुष्पिका-वाक्य निम्नवत है -
___"श्री जयसिंहदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठिप्रणामोपार्जितामलपुण्यनिराकृतनिखिलमकलंकेन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन न्यायकुमुदचन्द्रो लघीयस्त्रयालंकारः कृतः इति मंगलम्।"
इससे विदित होता है कि इस ग्रन्थ की रचना पण्डित प्रभाचन्द्र ने धारा नगरी में श्री जयसिंहदेव (1053-1060 ई.) के राज्यकाल में की थी।
'न्यायकुमुदचन्द्र' की प्रशस्ति में आये इस पद्य -
"अभिभूय निजविपक्षं निखिलमतोद्योतनो गुणाम्बोधिः ।
सविता जयतु जिनेन्द्रः शुभ प्रबन्धः प्रभाचन्द्रः॥" से विदित होता है कि उन्होंने एक 'प्रबन्ध' की भी रचना की थी। ‘आराधना सत्कथाप्रबन्ध' नाम से उपलब्ध कृति, जो एक गद्यकथाकोश है, की प्रशस्ति में