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जैनविद्या 24
भी पण्डित प्रभाचन्द्र ने ऊपर अंकित प्रशस्ति के अनुरूप उसकी रचना धारा नगरी में रहते हुए श्री जयसिंहदेव के राज्यकाल में किये जाने की बात लिखी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस कथाप्रबन्ध की रचना 'न्यायकुमुदचन्द्र' की रचना के पूर्व हो चुकी थी।
_ क्रियाकलाप टीका' प्रभाचन्द्र ने अपने गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्तिक की कृति 'क्रियाकलाप' पर रची थी।
हम्मच के पद्मावती मन्दिर के प्रांगण में एक शिलाखण्ड पर, बिना कालनिर्देश का, एक लेख उत्कीर्ण मिला है जो जैन शिलालेख संग्रह (तृतीय भाग) में लेख सं. 667 के अन्तर्गत पृष्ठ 514-529 पर संकलित है। लेख प्रारंभ में कन्नड़ में तथा तदनन्तर संस्कृत में निबद्ध है। लेख को पढ़ने से ऐसा विदित होता है कि वह विजयनगर सम्राट कृष्णदेवराय के राज्यकाल (1509-1530 ई.) में हुए प्रसिद्ध वादी विद्यानन्द स्वामी के निलय में आयोजित कल्याण-पूजा-उत्सव पर स्वामीजी के शिष्य देवेन्द्रकीर्ति और उनके शिष्य वर्द्धमान मुनि द्वारा स्वामीजी को प्रशस्तिस्वरूप लिखाया और उत्कीर्ण कराया गया था। उक्त शिलालेख में स्वामीजी
और उनके उपर्युक्त शिष्यों के उल्लेख के अतिरिक्त कई अन्य तत्कालीन एवं पूर्वज आचार्यों-विद्वानों आदि को भी स्मरण किया गया है। लुइस राइस ने लेख का समय 1530 ई. अनुमानित किया है। उक्त लेख में उपर्युक्त माणिक्यनन्दि और प्रभाचन्द्र का उल्लेख भी निम्नवत मिलता है -
माणिक्यनन्दी जिनराज-वाणी-प्राणाधिनाथः पर वादि-मर्नी । चित्रं प्रभाचन्द्र इह क्षमायाम मार्तणड-वृद्धौ नितरां व्यदीपित् ।।
सुखी...न्यायकुमुद चन्द्रोदय-कृते नमः।
शाकटायन-कृत्सूत्र न्यास-कर्त्रे व्रतीन्दवे॥ इससे विदित होता है कि व्रती प्रभाचन्द्र की प्रमेयकमलमार्तण्ड' और 'न्यायकुमुदचन्द्र' के साथ-साथ वैयाकरण शाकटायन द्वारा रचित व्याकरण सम्बन्धी सूत्रों पर कोई न्यास रचने की भी ख्याति रही थी। वैयाकरण शाकटायन राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष के राज्यकाल (815-877 ई.) में हुए थे।
उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त विवेच्य पण्डित प्रभाचन्द्र को आचार्य कुन्दकुन्द (ई.पू. 8-44) के पंचत्थिपाहुण' (पंचास्तिकाय) पर ‘पंचास्तिकायप्रदीप' और प्रवचनसार' पर 'प्रवचनसार-सरोजभास्कर', आचार्य समन्तभद्र (लगभग 120-185 ई.) रचित