Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 23
________________ 14 जैनविद्या 24 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' पर 'रत्नकरण्डश्रावकाचार-टीका', देवनन्दि पूज्यपाद के 'समाधितन्त्र' पर 'समाधितन्त्र-टीका', आदिपुराणकार जिनसेन (770-850 ई.) के शिष्य गुणभद्र द्वारा रचित 'आत्मानुशासन' पर 'आत्मानुशासनतिलक' नामक टिप्पण और पुष्पदंत के महापुराण (965 ई.) पर 'महापुराण-टिप्पण' रचने का भी श्रेय दिया जाता है। चूंकि प्रभाचन्द्र नाम के अनेक विद्वान-आचार्य हुए हैं, अतः यह गवेषणा का विषय है कि क्या उपर्युल्लिखित सभी कृतियों के रचयिता 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' के कर्ता पण्डित प्रभाचन्द्र ही हैं ? ___पंचास्तिकायप्रदीप' और 'समाधितन्त्र-टीका' (समाधिशतक टीका) में रचनाकार ने 'प्रमेयकमलमार्तण्ड', 'न्यायकुमुदचन्द्र' और 'आराधना-सत्कथा-प्रबन्ध' की भाँति अपने नाम के साथ ‘पण्डित' विशेषण का प्रयोग किया है, अतः इनके रचनाकार एक ही प्रभाचन्द्र प्रतीत होते हैं। इसी प्रकार 'समाधितंत्र-टीका' से शैलीगत साम्य तथा 'आराधना-सत्कथा-प्रबन्ध' में पायी जानेवाली कथाओं से साम्य के आधार पर 'रत्नकरण्डश्रावकाचार-टीका' के कर्ता भी उक्त पण्डित प्रभाचन्द्र प्रतीत होते हैं। ___ हमें ऐसा प्रतीत होता है कि विवेच्य पण्डित प्रभाचन्द्र मूलतः दक्षिण । भारत के निवासी थे और वहीं वे कुलभूषण यति के साथ अविद्धकर्ण, कौमारदेवव्रती, ज्ञाननिधि पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य बने, किन्तु कालान्तर में उत्तर की ओर विहार कर धारा नगरी में जा बसे जहाँ ‘परीक्षामुख' के रचयिता माणिक्यनन्दि के सम्पर्क में आये और उनसे न्याय-विषयक ज्ञान अर्जित कर उन्हें भी अपना गुरु माना। 'सुदंसणचरिउ' और 'सकलविधि-विधान-काव्य' के रचयिता नयनंदी भी उक्त माणिक्यनन्दि के शिष्य थे। उन्होंने अपने ‘सकलविधि-विधान-काव्य' में अपने गुरु के साथ-साथ अपने सह-अध्यायी प्रभाचन्द्र का भी स्मरण किया है, इससे लगता है वे भी इनकी प्रतिभा से प्रभावित थे। अपने 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' में प्रभाचन्द्र ने अपने को रत्ननन्दि के चरणों में भी रत बताया है। ये रत्ननन्दि कौन थे और कहाँ व कैसे प्रभाचन्द्र के गुरु बने, यह स्पष्ट नहीं है। प्रभाचन्द्र द्वारा अपने कृतियों में अपने नाम के साथ ‘पण्डित' विशेषण लगाने से ऐसा भासित होता है कि वे एक गृहस्थ विद्वान थे और उन्होंने अपनी अधिकतर कृतियों का प्रणयन धारा नगरी में निवास करते हुए धारा- नरेश भोजराज और जयसिंहदेव के राज्यकाल में किया था। चारुकीर्ति कृत 'प्रमेयरत्नमालालंकार' में

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