Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ जैनविद्या 24 उपर्युक्त दोनों उद्धरण-अवतरण प्रभाचन्द्र कृत 'शब्दाम्भोज भास्कर' के निम्न उद्धरण से पूर्णतः मिलते हैं - “तदात्मकत्वं चार्थस्य अच्छक्षतोऽनुमानादेश्च यथा सिद्धयति तथा प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे च प्ररूपितमिह द्रष्टव्यम्।" इसके अतिरिक्त प्रभाचन्द्र द्वारा कृत गद्यकथा कोश में पाई जानेवाली अंजन चोर आदि की कथाएँ रत्नकरण्ड श्रावकाचार-गत कथाओं से पूर्णतः मिलती हैं। अतः निःसंदेह रत्नकरण्ड श्रावकाचार और समाधितंत्र की टीकाएँ प्रस्तुत श्री पण्डित प्रभाचन्द्र द्वारा रचित ही हैं। इसी प्रकार क्रियाकलाप के टीकाकार भी पण्डित प्रभाचन्द्र ही हैं। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने प्रतिपादित किया है कि क्रियाकलाप की टीका की एक हस्तलिखित प्रति बम्बई के सरस्वती भवन में विद्यमान है। इस प्रति की प्रशस्ति में क्रियाकलाप टीका के रचयिता प्रभाचन्द्र के गुरु का नाम पद्मनन्दि सैद्धान्तिक का उल्लेख है। प्रशस्ति पद्य निम्न है - वन्दे मोहतमोविनाशनपटुस्त्रैलोक्यदीपप्रभुः संसृदुर्तिसमन्वितस्य निखिलस्नेहस्य संशोषकः । सिद्धान्तादिसमस्तशास्त्रकिरणः श्री पग्रनन्दिप्रभुः तच्छिष्यात्प्रकटार्थतां स्तुतिपद प्राप्तं प्रभाचन्द्रतः।। इसी प्रकार उपर्युक्त अन्य कृतियाँ भी असंदिग्ध रूप से श्री प्रभाचन्द्र द्वारा रचित हैं। ___श्री प्रभाचन्द्र के काल के विषय में डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने डॉ. पाठक, श्री जुगलकिशोर मुख्तार, पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री, आदि विद्वानों के विचारों का मंथन कर विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर पण्डित प्रभाचन्द्र की पूर्वावधि 940 ई. सन् और उत्तरावधि 1100 ई. सन् माना है, जबकि न्यायाचार्य पण्डित महेन्द्रकुमारजी ने अनेक पुष्ट प्रमाणों के आधार पर ई. सन् 980 से 1065 ई. सन् तक स्वीकार किया है जो अधिक तर्क-संगत प्रतीत होता है। 1. प्रमेयरत्नामालालंकार 2. वही 3. जैन शिलालेख संग्रह, भाग-1 (शिलालेख 55/69, पद्य 17 व 18)

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122