Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 24
________________ जैनविद्या 24 15 उन्हें 'प्रभेन्दुसूरिः' उल्लिखित किये जाने से लगता है कि संभव है उन्होंने कालान्तर में मुनि-दीक्षा ग्रहण कर ली हो और जिन कृतियों में पण्डित विशेषण का प्रयोग नहीं है वे उनकी दीक्षा के उपरान्त की कृतियाँ हों। ‘आत्मानुशासनतिलक' के अन्त में प्रभाचन्द्राचार्यविरचितं' तथा 'प्रवचनसार- सरोजभास्कर' के अन्त में 'इति श्री प्रभाचन्द्रदेव विरचिते' अंकित पाया जाता है। यह भी संभव है कि ये रचनायें किन्हीं अन्य प्रभाचन्द्र की हों। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 'जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह' (प्रथम भाग) (वीर सेवा मन्दिर) में प्रशस्ति सं. 134 'द्रव्यसंग्रहवृत्ति' की है, जिसके अन्त में अंकित है - _ “इति श्रीपरमागमिकभट्टारक-श्रीनेमिचन्द्रविरचित-षड्द्रव्यसंग्रहे श्रीप्रभाचन्द्रदेवकृतसंक्षेपटिप्पणकं समाप्तम् ।।" और पण्डित परमानन्द शास्त्री ने विवेच्य पण्डित प्रभाचन्द्र से भिन्न इसका कर्ता माना है। - डॉ. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य द्वारा सम्पादित तथा माणिक्यचन्द्र जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित 'न्यायकुमुदचन्द्र' में पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री ने अपनी विशद प्रस्तावना में इस बात पर प्रभूत प्रकाश डाला है कि विवेच्य प्रभाचन्द्र ने न केवल जैन ग्रन्थों का सम्यक् अध्ययन-मनन किया था अपितु जैनेतर साहित्य और दर्शनों का भी सम्यक् ज्ञान प्राप्त किया था। कमलशील कृत 'तत्त्वसंग्रह की पञ्जिका' और जयन्तभट्ट की 'न्यायमञ्जरी' के भाषा-सौष्ठव और प्रतिपादन शैली से वे विशेष रूप से प्रभावित रहे। वैशेषिक, सांख्य-योग, वेदान्त, मीमांसा, बौद्ध और वैयाकरण दर्शनों का ज्ञान उन्हें अपनी बात तुलनात्मक और युक्तियुक्त ढंग से प्रस्तुत करने और विपक्षियों के तर्कों का खण्डन करने में सहायक बना। पण्डित कैलाशचन्द्रजी ने प्रभाचन्द्र की कृतियों की भाषा ललित और शैली निर्बाध प्रवाहवाली बतायी है। विद्यानन्द और अनन्तवीर्य से प्रेरणा लेनेवाले विवेच्य प्रभाचन्द्र ने व्याख्या हेतु अपनी अलग शैली विकसित की थी और उसका प्रभाव अनेक परवर्ती रचनाकारों पर पड़ा जिनमें 'सन्मतितर्कटीका' के रचयिता अभयदेवसूरि और 'स्याद्वादरत्नाकर' के रचयिता वादिदेवसूरि का नाम उल्लेखनीय है। आचार्य हेमचन्द्र की 'प्रमाणमीमांसा' पर भी प्रभाचन्द्र का प्रभाव बताया जाता है। प्रभाचन्द्र नाम के अनेक विद्वान, आचार्य आदि हो जाने तथा कृतियों में रचनाकार के विषय में पूर्ण विवरण के अभाव में विवेच्य पण्डित प्रभाचन्द्र का

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