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३५.
इस संघ के श्रादि एवं प्राचीन कुछ लेख होम्सलों के उत्पत्ति स्थान श्रदि (सोसेदूर ) से ही प्राप्त हुए हैं। इस स्थान के एक लेख नं० १६६ ( सन् १६० के लगभग ) में इस संघ को द्रविड संघ कोण्डकुन्दान्वय, तथा दूसरे लेख नं० १७= (सन् १०४० ई० १ ) में मूलसंत्र द्रविडान्वय लिखा है । पर ई० ११ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के लेख नं० १८०, १८६, १६०, १६२,२०२, २१४,२१५,२१६ ओर २२६ में इसका द्रविड़ गए के रूप में नन्दिसंग इरुङ्गलान्वय या रुङ्गलान्वय के साथ उल्लेख किया गया है। इन निर्देशों से यह अनुमान होता है कि प्रारम्भ में नत्र संगठित द्रविड़ संघ ने अपना श्राधार या तो मूलसंघ को या कुन्दकुन्दान्वय को बनाया होगा पर पीछे यापनीय सम्प्रदाय के विशेष प्रभावशाली नन्दिसंघ में इस सम्प्रदाय ने अपना व्यावहारिक रूप पाने के लिए उससे विशेष सम्बन्ध रखा या द्रविड़ गए के रूप में उक्त संत्र के अन्तर्गत हो गया । पीछे यह द्रविड़ गण इतना प्रभावशाली हुआ कि उसे ही संघ का रूप दे दिया गया और साथ में कुछ लेखों ( २१३ - २१५ ) में नन्दिसंघ को नन्दिगण के रूप में निर्दिष्ट किया गया पर पीछे उसको उसी रूप ( नन्दिसंघ ) में उल्लेख किया गया है । दर्शनसार ( १० वीं शता० ) में द्रविड़ संघ को यापनीयों के साथ जो जैनाभास कहा गया है, वह संभव है, इस ओर हो संकेत कर रहा है ।
होटलों के उत्पत्तिस्थान अदि ( सोसेवूर ) से इस संघ के आदि एवं प्राचीन लेखों की प्राप्ति से हम अनुमान करते हैं कि इस संघ के प्रारम्भिक आचार्यों ने जैन धर्म संरक्षक होम्सल नरेशों को ऊपर उठाने में अवश्य सहायता की होगी, अथवा प्रगतिशील दोनों - राज्य एवं संघ ने एक दूसरे को बढ़ाने की कोशिश की होगी । होयसल वंश के अनेकों नरेश और सेनापति इस संघ के
१. बहुत संभव है कि होय्सल वंश के समुद्धारक सुदत्तमुनि ( ४५७ ) या वर्धमान मुनि (६६७ ) लेख नं० १६६ में श्रायें त्रिकाल मौनि देव हों या विमलचन्द्राचार्य के सधर्मा कोई और मुनि हो ।