Book Title: Jain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 26 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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શ્ર અશોક સિંહલજી પત્ર
रम आदरणीय माननीय अशोक सिंहलजी
दर प्रणाम
३६-३७ * ८-५-२००१
श्री जैन शासन (सहवारिङ) * वर्ष : 13 * वह कथा तो आप जानतें ही हैं एक आदमी अपना घोड़ा लेकर बाजार में बेचने जा रहा था। मार्ग में बार धूर्तों ने उसे बारी बारी से - " गधा लेकर कहाँ जा रहे हो ?" पूछा और अन्तत: वह भी अपने घोड़े को गधा समझने लगा । यही चाल इसमें भी है।
दिनांक : ९-१-२००१
आप कुशल होंगे।
यूरोय के तथाकथित विद्वानों ने भारत की प्रजा के सांस्कृतिक जीवन के बारे में अनेक झूठ प्रचलित किये हैं। उसी तरह भारतीय प्रजा की सांस्कृतिक उत्पत्ति के बारे में भी कई झूठ लाये हैं।
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उसका एक दृष्टांत यह है भारतीय संस्कृति मात्र ५००० वर्ष पुरानी है !
क्या जैनों के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान और उन्होंने जगत को भेंट दी वह जीवन-व्यवस्था मात्र ५००० वर्ष पुरानी है ? क्या मनुस्मृति के द्वारा जगत को भेंट दी गयी संस्कृति मात्र ५००० वर्ष पुरानी है ?
आर्य हिन्दू प्रजा के महासंतो द्वारा जगत को भेंट दी गयी चार पुरुषार्थो की संस्कृति और जीवन-व्यवस्था तो लाखों वर्ष प्राचीन है और इसी लिये उसकी जड़ें प्रजा के जीवन में गहराई तक फैली हैं।
" ईसा मसीह की बतायी जीवन व्यवस्था दो हजार वर्ष पानी है, तो आर्य संतों द्वारा बतायी जीवन व्यवस्था मात्र पाँच हजार वर्ष पुरानी है" एसा मनवाकर आर्य महासंतों की अद्भुत जीवन व्यवस्था का अवमूल्यन करने के लिये यूरोप के और विशेषतया जर्मनी के विद्वानों की पुस्तकों में, भाषणों में यह झूठ लाया गया है। अपने संतों तथा विद्वानों के वक्तव्यों में भी इस झठ की असर कहीं कहीं देखने को मिलती है। यह भूल सुधारने की आवश्यक्ता है।
(चना नं. पष्ट थी बाबु ) અર્થષ્ટ-નુકૂળ કે અનિષ્ટ પ્રતિકૂળ પ્રસંગો અસર કનરા નહિ બને. આવો મનોભાવ કેળવવો ખૂબ જ જરૂરી છે. કાચ પોતાની પામરતા - નિર્બલતા - કમનશીબીના યોગે ઇષ્ટા ન્જિ પ્રસંગની અસર થઇ જાય તો પણ તે પુણ્યાત્મા તરત જ તેને ભૂંસી નાખવા કામવાદ બને છે, તેને તે સારી માનતો જ નથી. કમજન્ય કોઇપણ પ્રસંગ આત્માની સ્થિરતા-સ્વસ્થતા-પ્રસન્નતાને હસ્તારો ન જ થવો જોઇએ. આ વાત સહેલી નથી પણ સંભવિતશક્ય - અગત્યની પણ તેટલી જ છે. આવી રીતના જ્ઞાનિઓના વચનોનો પરમાર્થ વિચારી - સમજી આપણે પણ આ શરીરના
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जैन शास्त्रों के अनुसार महाभारत का युद्ध जैनों के बाइसवें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमी के समय में अर्थात् आज से लगभग ८७,५०० वर्ष पूर्व लड़ा गया था। भगवान श्री र मचन्द्रजी आदि तो उनसे भी हजारों वर्ष पूर्व जैनों के बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी के समय में हुए । सगर चक्रवर्ती वगैरह का समय तो लाखों वर्ष पूर्व का है। जैन - शास्त्रों में इनका उल्लेख मिलता है। यह तो पीछे के तीर्थंकरों की बात हुई जिनकी आयु क्रश कम होती मानी जाती है। शुरुआत के तीर्थंकरों की आयु तो अंकगणित की सीमा से भी परे थी ।
यही बात वैदिक धर्म के अनुसार माने गये युगों के बारे में है - सतयुग, त्रेता, द्वापर युगों का काल भी असंग् य वर्षों का है। अतः हमारी संस्कृति मात्र ५००० वर्ष पुरानी है ऐसी यूरोपियन झूठी हवा को सत्य मानने की भूल नहीं होनी चाहिये और हमारे जो वर्तमान संत और विद्वान इस झूठ को अभानता से अपनाने लगे हैं, उनका ध्यान इस और आकर्षि करके हमारी संस्कृति लाखों वर्ष पुरानी होने की बात सुयोग्य अवसरों पर ठोक-बजाकर करनी चाहिये ।
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आपसे निवेदन है कि इस बारे में आप यथायोग्य " करेक्टिव" कदम उठायेंगे।
भवदीय अरविदभाई पारेख
વળગાડમાંથી મુક્ત થવા પ્રયત્ન કરીએ, શરીરની માય. મોહ-મમતાને મારનારા બનીએ. આવું સૌભાગ્ય - સામર્થ્ય પાણી આપણે સૌ પરંપરાએ અશરીરી બનીએ તે જ હાર્દિક બંગલ કામના.
મોઝારતીર્થ (જામનગર) ભૂકંપથી અહિં જુના દેરાસરને ઘણું નુકશાન થયું છે. શિખર અને ગભારાની દિવાલોમાં तिराड़ी पड़ी है. पाटीमा पक्ष तिराई पड़ी है. જેથી તેનું શમારકામ કરતાં કદાચ શિખર Gaारवुं पडशे.