Book Title: Jain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 26 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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A AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA HAA પાંચ ક્ષઓકી ભાગવતી દીક્ષા કા સંતિપ્ત પરિચય श्री जैन शासन (हवा) * वर्ष १3 * खंड ३८/३८ * ता. २२-५-२००१ ।। श्री महावीर स्वामिने नमः ॥
॥ श्री ऋषभदेवाय नमः ॥
॥ श्री मदात्म-कमल-दान- प्रेम-राम-कमलरत्नसूरि सदगुरुभ्यो नमः ॥ श्री जोधपुर (सूर्यनगरी) में मुमुक्षु विकासकुमा उम्र २२ वर्ष, पिता श्री प्रकाशचन्द्रजी माता पुष्पाबेन पिंड़नाडावालो के करकमलों में समर्पित अभिनन्दन पत्र
॥ श्रीज्ञान- प्रेम-रामचन्द्र यशोदेवराजतिलक कमरेभ्यो नमः ॥ दीक्षार्थी विकासकुमार प्रकाशचन्द्रजी के कर कमलो में समर्पित अभिनन्दन पत्र
मुमुक्षु
अनंत पुण्योदय से आपको देव दुर्लम मनुष्य जन्म मिला, श्रेष्ठ और संस्कारी कुल मिला, गुरु भगवंतो के मुख से वीतरागवाणी का तपान मिला। धर्म श्रद्धा का दिव्य दीप प्रज्वलित हुआ । संसार के क्षणिक सुखों पर वैराग्य जगा, और विरतिधर्म स्वीकारने की भव्य भावना पल्लवित हुई । प. पू. वर्धमान तप की १०० ओली के महान तपस्वी आ. श्री विजय कमलरत्नसूरीश्वरजी म. सा. को अपना जीवन समर्पित करने का निर्णय किया ।
महामिनिष्क्रमण के मार्ग पर आपका यह पुरुषार्थ आपके अंतर रहे हुए वीरत्व को साबित करता है। जिस श्रद्धाबल से जिस अनंतसुख की इच्छा से आप सिंह जैसा पराक्रम कर रहे हो उस श्रद्धा को इच्छा को अन्तिम श्वास तक टिकाये रखना और वृद्धि करना । आप अपने संयम जीवन को गुरु आज्ञामय, विनयमय, वैयावमय, तपोमय, त्यागमय, तितिक्षामय और स्वाध्यायमय बनाकर आत्म रमणता का परम आस्वाद प्राप्त करना। प्रमाद शत्रु से सावधान रहना । आपके संयमधन को लुटने वाले कषाय चोरों को जरा भी घुसने मत देना ।
माद शत्रु से सदा सावधान बनकर आराधना का राधावेध साधकर मुक्ति रुपी कन्या की वरमाला वरना । एवं
पिण्डवाडा के पनोते पुत्र प. पू. आ. श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी म. सा. जिस तरह पिण्डवाडा का नाम रोशन किया, उसी तरह आप भी रोशन करे, यही शुभाभिलाषा।
श्री प्रकाश के घर विकासने धर्म की ज्योत जलाई
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दीक्षा स्थल : पिंड़वाडा (सिरोही) दीक्षा तिथि-अते शीघ्र
आज जहां तहां भौतिकवाद की भयंकर आंधी में युवा पीढ़ी भटक रही है। चारों दिशाओं में भौतिकवाद की अग्नि जल रही है, इस भवसागर से पार उतरने का कोई रास्ता नहीं है, अगर है। तो मात्र जिनेश्वर भाषित धर्म एवम् उसके प्रसार कर्ता गुरु भगवन्त ! इस कारण ही ऐसे हुण्डावसर्पिणी काल में भी ऐसी अनेक भव्यात्मा है। जो अपने इस भौतिकवाद के चकाचौन्ध से परे हटकर आमकल्याण
तरफ आकर्षित हुए बगेर रहती नही, इस श्रेष्ठ कार्य में एक नाम आपका भी जुड़ गया है। आपने प. पू. आचार्य देव श्री मद् विजय जितेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्यरत्न आचार्यदेव श्रीमद विजय कमलरत्नसूरीश्वरजी म. सा. एवम् विदुषी साध्वीजी हर्षित प्रज्ञाश्रीजी आदि के वैराग्य वासित वाणी द्वारा वैराग्य को प्राप्त किया। अतः आपका बहुमान पूर्वक अभिनन्दन करते हुए हम भाव विभोर बन गये है, चारो तरफ आनन्द की लहरें होलोरे ले रही है। श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ धर्म क्रिया भवन, जोधपुर में उपरोक्त आचार्य भगवन्त के ही शिष्यरत्न प. पू. अनुयोगाचार्य श्री दर्शनरत्नविजयजी गणिवर्य एवम् आपके शिष्य प्रशियरत्न प पू. श्री भावेशरत्नविजयजी म. सा. प. पू. श्री प्रशमरत्न वेजयजी म. सा. की शुभ निश्रा में आपका बहुमान करते हुए हमें अ ते प्रसन्नता हो रही है।
१. देवदाणव गन्धवा, जवखरक्स किन्नराः बंभयारिं नमसंति दुक्करं जे करंति ते ॥ १ ॥
भावार्थ ब्रह्मचर्य रूपी दुष्कर व्रत को जो ग्रहण करते हैं. उनको . देव, दानव, यक्ष, राक्षस, किन्नर भी नमस्कार करते है । २. प्रव्रज्या गृह्यते धन्यै धन्यैश्च परिपाल्यते, प्रवज्या कार्यतें धन्यैः धन्वैश्व परिदृश्यते ॥
चि. विकास ने असार संसार को त्याग संयम की बंशली बजाई कंटक भरे इस मार्ग में, तुम सदा विजयी रहो. उच्च आदर्शो से भरे, इस पथ पर, तुम सदा गंगा बन बहो । स्थल: पोरवाल जैन न्यातीनोहरा,
वि. सं. ०५६,
जेठ ७, शनिवार, दिनांक १० ६२०००.
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लिखी
श्री जैन संघ, पिण्डवाडा (राज.) ३०७०२२, जिला - सिरोही.
भावार्थ दीक्षा लेने वाले धन्य है, दीक्षा का पालन करने वाले धन्य है, दीक्षा दिलाने वाले एवं दीक्षा की अनुमोदना करने वाले भी धन्य है ।
३. स्वर्गस्था पितरो वीक्ष्य दीक्षितं जिन दीक्षय
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मोक्षाभिलाषिणं पुत्रं तृप्ताः स्युः स्वर्गि सदि ॥
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