Book Title: Jain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 26 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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AHH VAHHAAAAAAAAAAHAHAHAHA HA HA H H H F પાંચ મુમુક્ષુકી ભાગવતી દીક્ષા કા સંક્ષિપ્ત પરિચય श्री जैन शासन (हवा) * वर्ष १3 * ४३८ / ३८ * ता. २२-५-२००१
अमारा वहाला भाई श्री विकासभाई तमारो स्वीकारतो मार्ग अति कठीन छे. छतां तमारी ऊँची भावना ओवी छे के तेना पालनमा लावतां उपसर्गों के संकटोंने हँसते मुखे सहन करवामां तमे जरुर वित्तमान धशो। तमो धर्मनो ध्वज विजयी धई फरकावजी. संयमनी अपूर्व आराधनामां उजमाल रहेजो, ज्ञानध्यानमां प्रमादरहित पणे मग्न हेजो आ दिव्य पंधनी ज्योत समाजमा प्रसारावजो, शासनदेव नमारी महान मुक्तिनी आशाओंने फलीभूत करे, तमोने महान शक्ओिं खीलववा बल, उत्साह अने सफलता आपे, तमारी महान् साधना अने मोक्षमार्गनी आशाओनें फलीभूत करे, अवी अमे शासन देव ने प्रार्थना करीओ छीओ ।
आजना मंगलमय अपूर्व अवसरने श्री आकोला जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ प्रेमपूर्वक आवकारी हार्दिक अनुमोदना करे छे । मारो मार्ग निष्कटंक बने... तमारी साधना उजमाल बने... तरी भावना शीघ्र कल्याण साधे... अज भावनाओं सह संवत २०:६, लिखी
पोष शुद ● रविवार, १६ १६ ९-२०००
श्री जैन श्वे. मूर्तिपूजक संघ आकोलाना प्रणाम
॥ श्री जिनेन्द्राय नमः ॥ सवि जीव करू शासनरसी अभिनंदन पत्र
चरम तीर्थंकर, देवाधिदेव, श्रमण भगवान श्री महावीर प्रभु अ दर्शावे परम पवित्र साधुपदना मार्गे महाभिनिष्क्रमण करवाना ध्रुव निर्धा वाला मुमुक्षु ..
विकास प्रकाशचन्द्र जैन
पुग्यवान पवित्र कुलीन श्रावक माता पिताने त्यां जन्म पामी, महान पुन्धना उदय थी अने अत्यन्त लघुकर्मिताना कारणे आपे लघुवयम ज उत्तम प्रकारना धर्मनुं ज्ञान मेलब्धुं अने संस्कार पथ आपना उत्तम ज रह्या. अटलुज नहि पण संसारनी असारताने सारी ते समजाने आप साधु धर्म प्रत्ये अत्यन्त अभिलाषावाला धया छे. जी अमे अंत:करणमा अत्यन्त प्रमोद अनुभवी छ ।
आफ्नो सर्वत्यागनो मार्ग निर्विघ्न बनो, आवेला विघ्नों पर आप जय पामनारा थाओ, अने आप पोतानां तेमज बीजा अनेक भव्यजीवांना आत्मानुं कल्याण करनारा थाओ आपनो पवित्र 1 आत्मा २५, त्याग, क्षमा, ध्यान, आदि अनेक गुणों थी पवित्र थाओ ने आप दर्शन, ज्ञान, चारित्रनी महान् ज्योतिने धारण करनारा धाओ ।
भर युवावस्थामा मोहनां प्रलोभनोने वश न थतां आप आ पवित्र राहे प्रयाण करवा तत्परं थया छो. ओ जोई दरेक भव्य आत्मा आजना मंगलमय दिवसे गौरव अने आनंद अनुभवे छे।
स्वपर उन्नतिना मार्गे आपश्री अस्खलित रीते आलने आगल वधता रहो, धीर वदने आराधना पताकाने गनमां फरकावो आपनी आ प्रव्रज्या दरेक भव्य आत्मा माटे आप थाओ। पूर्वना महासत्त्वशाली पुरुषोंनो आ महामार्ग छे तेओओ जे रीते महोसत्त्व द्वारा स्वपर कल्याण साध्युं ते रीते आपण साधनारा थाओ ।
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गुरुकुलवास तेज साचु संयम छे. साची सर्वविरति अने साचो मोक्षमार्ग के, आप गुरुभगवंतोनो उत्तम विनय अने बहमान तथा सहवर्तिओनी उत्तमोत्तम भक्ति करनारा थाओ मैत्र्यादि चार भावनाओं, अनित्यादि वार भावनाओं अने महाव्रतनी चीस भावनाओं बगेरे उत्तम भावनाओंनो निरन्तर अभ्यास करी आप साची समताने साधनारा धाओ छो जीवनिकायां आपक थाओ । साचुं ज्ञानगर्भित वैराग्य आपनुं निरंतर विकसो । अमे इच्छीओ छीओ के उत्तमोत्तम साधना वडे आप धर्मतीर्थंकरनी उत्तम पदवी प्राप्त करनारा थाओ । आप निरंतर कर्म - निर्जरानुं लक्ष राजनारा अत्यन्त निस्पृह, बीजा अनेक जीवोंने धर्ममां सहाय करना अने अप्रमत्त संयमनां महासाधक थाओ... ओवी अमारी अंतर तीव्र अभिलाषा छे ।.
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आपना ते माता-पितादि संबंधीओं पण धन्य अने भाग्यशाली छे के जेओ ओ आ उत्तम मार्ग तरफ आपने प्रेरक के आ मार्गे वालनारा आपना गुरु भगवंतो ने पण धन्य छे । ते बधा ना तथा अमारा बधाना आप अंगे जे उत्तम मनोरथों छे, तेने आप पूरनारा थाओ, अने अमारा जेवाओने संसारमांधी उगनारा थाओ।
आपनां संयमनां परिणाम निरन्तर वृद्धिने पामता रहे मने ते माटे आप निरंतर प्रयत्न करतां रहो, ओज अमारी अंतरनी अभिलाषा छे ।
लिखी श्री चीराबजार जैन संघ विजयवाडी, मुंबई-२. नोट: मुमुक्षु शालिनीकुमारी एवं सोनमकुमारी को भी चिरानाजार, मुंबई संघ की तरफ से उपरोक्त मुजब अभिनंदन पत्र दिया गया। HCIC# #CICICICCHCHHAAAA[509 Httttttt A A A A A A A t
2010)
दी. १५-२०००