Book Title: Jain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 26 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir

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Page 188
________________ ZA A A A A H HAHAHHAHHAHHAAAAAAAAAAAH HAZ પાંચ મુમુક્ષુકી ભાગવતી દીક્ષા કા સકિ પરિચય श्री जैन शासन (हवाडि) * वर्ष १3 * ४३८/३८ ता. २२-५२००१ शुभ मिश्रा प. पू. आचार्यदेव श्रीमद जय दर्शनरत्नसूरीश्वरजी म. मुनिप्रवर श्री भावेशरत्नविनयजी म., मुनिराज श्री प्रशणरत्नविजयजी म. पू. बालमुनि रत्नेशरत्नविजयजी म. प्रार्थना है कि तुम्हारा संयम जीवन सफल हो, प्रति पल धर्म की आराधना कर मोक्ष मार्ग का सच्चा पथिक बने, “जैनम् जयति शासनम्" का शंखनाद करते रहो और स्वयं देवता तुम पर नाज करे यही अभिलाषा. आज हम समस्त श्री नवीवाड़ी झावबावाडी राजस्थान जैन संघ मुमुक्षु विकास का हार्दिक अभिनंदन करते हुए गर्व महसूस कर रहा है। पुनः हार्दिक अभिनंदन स्थल - मुंबई दिनांक : ०५-२००० राजस्थान संघ मुंबई नोट: इस तरह के तथा आगे के बहुमान पत्र मुमुक्षु शालिनीकुमारी अमृतलालजी महेता तथा मुमुक्षु सोमकुमारी पारसमलजी सादरीया को भी दीये गये उनका उतारा इसी अनुसार समझना । लि. श्री नवीवांडी झावबावाडी L - ॥ श्री महावीर स्वामिने नमः ॥ ॥ श्रीम रामचन्द्र कमलरत्नसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः ॥ रमणिया जैन संघ की तरफ से दीक्षार्थी विकासकुमार पी. पिंडवाड़ावालों को समर्पित सन्मान पत्र आज जब चारों और भौतिकवाद की भयंकर आग भड़क रही है, ऐसे आधुनिक युग में आप श्री जिनेश्वर देवों के द्वारा स्वयं पालकर बनाये गये मार्ग पर जाने को कटिबद्ध हुए है आपको हमारा खूब खूब अभिनन्दन है। मिति मागसर वद ८, मंगलवार, ता. ३०-११-९९ - लिखी रमणिया जैन वावा मोकलर, जिला - बाड़मेर (राज.) पिन- २४३०४ - श्री आत्मकमल वीर-दान प्रेमरामचन्द्र सुदर्शन - राजतिलक महोदय सद्गुरुभ्यो नमः श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, पाटी का उपाश्रय सादडी - राणकपुर द्वारा समर्पित अभिनंदन पत्र - वंदनीय मुमुक्षु विकासकुमार प्रकाशचंद परम तारक सुविशाल गच्छाधिपति व्याख्यान वानस्पति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के विशेष उपदेश " छोडवा जेवी संसार लेवा जेवुं संयम, मेलववा जेवो मोक्ष, "के कथन को सहजता पूर्वक अपने जीवन में चरितार्थ करते आपने परिवार, समाज, शहर, क्षेत्र आदि का नाम उज्ज्वल किया है। संवत २०५४ में सादड़ी नगर में शांतमूर्ति एवं महान् उपस्वी प. पूज्य आचार्य देव श्रीमद् विजय कमलरत्नसूरीश्वरजी म. सा. आदि आचार्य भगवंत तथा अन्य साधु तथा साध्वी भगवती के सानिध्य में ऐतिहासिक चातुर्मास सम्पन्न हुआ था। चातुमास में आराधना हेतु आप श्री भी सादड़ी पधारे थे उस समय आप से विशेष परिचय सादड़ी निवासियों को हुआ था। धर्म के प्रति ज्ञान, जिज्ञासा, एवं उत्कंष्ठा से आपका धर्म समर्पण झलकता था। 1 निश्चय ही संयम मार्ग विकट है पर मोक्ष प्राप्ति के लिए अनिवार्य है। आपने उसे सहर्ष स्वीकार कर दर्शन, ज्ञान, चारित्र एवं तप को अंगीकार करने का निर्णय लिया है इसके लिए जैन श्वेताम्बर मूत्तिपूजक जैन संघ पाटी का उपाश्रय सादड़ी आपका हार्दिक अभिनन्दन करते हुए गौरव का अनुभव करता है । हे मोक्ष मार्ग के पथिक हमें आप पर पूर्ण श्रद्धा एवम् विश्वास है कि आप अपने गुरु का नाम उज्ज्वल करेंगे आप संयम प्राप्तकर धर्म की आराधना तथा ज्ञान के प्रचार में निरंतर प्रगति करते हुए मोक्ष पद प्राप्त करे इन्हीं मंगल अभिलाषा सहित विनीत श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ दीक्षाधर्म- अनन्त अनन्त तीर्थंकरों ने इसी साधु पद का शरण या षट्खंड के सम्राट चक्रवतिओं ने, भरत महाराजा f की पाट पर परा में असंख्य राजाओं ने, आज वर्तमान में विचरते हजार व रोड़ साधुओं ने, धन्ना शांतिभद्र, जंबुकुमार जैसे महा श्रीमंत श्रेओि ने भी ऋद्धि सिद्धि को एवं प्रेमाल परिवार का त्यागकर इसी परम पवित्र, परम मंगलमय साधु पद का शरण स्वीकारा है. इसका कारण वे समझते थे कि प्रतिदिन के ' असंख्य जीवों का हार, १८ पापस्थानकों का आचरण, परिवार के दाक्षिण्य से रागादिव सेवन, भगवद् भजन में अंतराय, आत्मचिंता भूलाने वाली परचिन्ताएँ, इत्यादि जीव को चौराशी लाख जीवायोनि में भटकाने वाली है। ऐसा घरवास छोड़कर निष्पाप संयममार्ग स्वीकारे बिना जीव की परमकल्याणरुप मुक्ति कभी नहीं हो सकती है। आप जगत के दीपक समान एवं आपके परिवार का नाम रोशन करने से कु दीपक बनकर भागवती दीक्षा लेने को उत्साहित बने है, उसका म अभिनंदन करते हैं। जेठ सुद १, Pio KMAH ###### HHHHHH YEE HAHAHAHAHHAHH HHH - -

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