Book Title: Jain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 26 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
View full book text
________________
3
ही
પાંચ મમક્ષ કી ભાગવતી દીક્ષા કા સંક્ષિપ્ત પરિચય શ્રી જૈન શાસન (અઠવાડિક) ૧ વર્ષ ૧૩ / અંક ૩૮/૩૯ * તા. ૨૨-
૫ ૦૧ भावार्थ - स्वर्ग में रहे हुए पूर्वज भी जिन दीक्षा से दीक्षित | गुरुपूजन किया। और बिपीन संतोकचंदजी (साधीजी
दीक्षाभिलाषी सन्तान को देखकर प्रसन्न होते है। धन्य लब्धिप्रज्ञाश्रीजी का संसारी सुपुत्र के तरफ से संघपूजन एवं कवली माता-पिता ! आप अपनी प्रिय सन्तान जैनशासनको | वोहराइ गई। एवं साध्वीजी लब्धिप्रज्ञाश्रीजी के बडीदीक्षा पीडवाडा सौंपने जा रहे है अत: आप भी शास्त्रप्रमाणों से धन्यवाद में रखने की आग्रह भरी विनंति की।
के पात्र है। अपने पांच प्रतिक्रमण, चार प्रकरण, तीन भाष्य
हिन्दी विक्रम संवत २०५८ (विक्रम संवत २०५७ साधुक्रिया, जीवविचार, नव-तत्त्व सार्थ, स्तवनादि कण्ठस्थ करके सम्यक्ज्ञान की आराधना की है।
प. पू. तपस्वी आचार्यदेव श्रीमद् विजय आने ३१ उपवास, ७ उपवास, वर्धमान तप का पाया,
कमलरत्नसूरीश्वरजी म. सा., प. पू. आ. दे. श्रीम मोक्ष दंडक तप, नवपद की ओली, ज्ञान पंचमी, पोष दशमी आदि तप करके वात्मा को भावित किया है।
पू. दीपकरत्नविजयजी म. का चातुर्मास जैन चारथुई दिया आपने अहमदाबाद से शंखेश्वर, पिंडवाडा से राणकपूर, भवन, खेरादियों का वास, जोधपुर (राजस्थान) मे गा उदयपुर से बामनवाडा, अहमदाबाद से पालीताणा, छ'रीपालित पदयात्रा संघ एवं गिरनार, समेतशिखर, जैसलमेर, आबू (देलवाडा) कच्छ, भद्रेश्वर, आदि दूर-सुदूर तीर्थो की यात्रा करके
प. पू. सुविशालगच्छाधिपति आ. दे. श्रीमद् विड़य सम्यगदर्शन को निर्मल किया है।
रामचन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. के लघुबन्धु लक्ष्मण तुल्य प... - हम री शुभ कामना है कि आप दीक्षा सिंह की तरह लेकर
तपस्वी आ. दे. श्रीमद् विजय अमृतसूरीश्वरजी म. सा. के पवार सिंह की त ह पालते हुए एवं स्वपर का कल्याण करते हुए शासन
प. पू. हालार देशोद्धारक आ. दे. श्रीमद् विजय जिनेद्र की खूब शं भा बढ़ाये।
सूरीश्वरजी म. सा. की शुभ निश्रामें पू. आ. दे. श्रीमद् विय वि.सं. २०४ आसोज सुद ११, दिनांक १२-१०-९७, रविवार,
| दर्शनरत्नसूरीश्वरजी म. सा., पू. मुनिप्रवरश्री भावेशरत्नविजयी लिखी
म., पू. मुनिराज श्रीप्रशमरत्नविजयजी म., पू. रत्नेशर न अध्य: - महावीर कासिया * मंत्री - निर्मलचंद भंडारी .
विजयजी म. का चातुर्मास हालारी जैन धर्मशाला, पंचासररो, महावीर श्री जैन श्वे. तपागच्छ समस्त संघ ...
शंखेश्वर - ३८४२४६ उत्तर गुजरात में होगा। इसके सिवाय की
अमदाबाद रामसीन, पाटण, पीडवाडा एवं २०० वर्ष के इतिहास (धर्मक्रिया भवन, खेरादियों,जोधपुर (राजस्थान)
में सर्वप्रथम तेरापंथ के गांव तारानगर (राजस्थान) में साध्वी की ज वितस्वामी तीर्थ (राजस्थान) नांदिया में
| मोक्षरत्नाश्रीजी, साध्वीजी सुरक्षित दर्शिताश्रीजी एवं साध्वी की बडीदीक्षा एवं भागवती दीक्षा
लब्धिप्रज्ञाश्रीजी का चातुर्मास विक्रम संवत, २०५७ में होंग। प. पू. शासनप्रभावक आचार्य देव श्रीमद् विजय कमलरत्नसू मेश्वरजी म. सा. तथा प. पू. आ. दे. श्रीमद् विजय अजितरत्नर रीश्वरजी म. सा. की शुभनिश्रा में नांदिया (राजस्थान)
यदि जीवन में शान्ति पाना हे तो जैनप्रवचन (हिनी) जिला, सिरे ही में अषाढ सुद ६ दि.७-७-२००० (१) मुनिराजश्री मासिक को पढे एवं प्रचार करें। . . दीपकरत्न जियजी गुरु - पू. आ. दे. श्री अजितरत्न सूरीश्वरजी म., (२) साध्वीजी गिरिशप्रज्ञाश्रीजी | गुरुणी - साध्वीजी
( आजीवन शुल्क रु. ५०१/-) निवृत्तिरक्षिाश्रीजी (३) साध्वीजी विनीतप्रज्ञाश्रीजी / गुरुणी -.
जैनप्रवचन प्रकाशन संस्थान साध्वीजी सूर्यप्रज्ञाश्रीजी। तीन बडी दीक्षा सानंद सपन्न हुई। पूज्यश्री
३३, केडिया एपार्टमेन्ट, २९ अफ, का चातुर्मास प्रवेश अषाढ सुद ९ दि. १०-७-२००० को सिरोही
डोंगरशी रोड, वालंकेश्वर, में हुआ। आज झाडोली, वीरवाडा, सिरोही, पींडवाडा आदि
मुंबई - ४०० ००६. सेंकडो से भाग्यवंत पधारे थे। श्री वीरचंदजीभाई ने बोली बोलकर .
**************
************