Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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प्रथम अध्याय ।
(१) सकर्मक क्रिया उसे कहते हैं-जो कर्म के साथ रहती है, अर्थात् जिस में
निया का व्यापार कर्ता में और फल कर्म में पाया जावे, जैसे-बालक
रोटी को खाता है, मैं पुस्तक को पढ़ता हूँ, इत्यादि ॥ (२) अकर्मक क्रिया उसे कहते हैं-जिसमें कर्म नहीं रहता, अर्थात् क्रिया का
मापार और फल दोनों एकत्र होकर कर्ता ही में पाये जावें, जैसे लड़का राता है, मैं जागता हूँ, इत्यादि ॥ मरण रखना चाहिये कि-क्रिया का काल, पुरुष और वचन के साथ नित्य सम्बन्ध रहता है, इस लिये इन तीनों का संक्षेप से वर्णन किया जाता है:
काल-विवरण। क्रिय करने में जो समय लगता है उसे काल कहते हैं, इस के मुख्यतया तीन भेद हैं- नूत, भविष्यत् और वर्तमान ॥ - भूतकाल उसे कहते हैं जिस की क्रिया समाप्त हो गई हो, इस के छः भेद हैंसामान्यभूत, पूर्णभूत, अपूर्णभूत, आमन्नभूत, सन्दिग्धभूत और हेतुहेतुमद्भूत ॥ (१) सामान्यभून उसे कहते हैं-जिस भूतकाल से यह निश्चय न हो कि-काम
थोड़े समय पहिले हो चुका है या बहुत समय पहिले, जैसे खाया, मारा,
इत्यादि ॥ (२) पूर्णभूत उसे कहते हैं कि जिस से मालूम हो कि काम बहुत समय
पहिले हो चुका है, जैसे- खाया था, मारा था, इत्यादि ॥ (३) अपूर्णभूत उसे कहते हैं जिस से यह जाना जाय कि क्रिया का आरंभ तो
हो गया है परन्तु उस की समाप्ति नहीं हुई है, जैसे-खाता था, मारता
था, पढ़ाता था, इत्यादि ॥ (४) आसन्नभूत उसे कहते हैं जिस से जाना जाय कि काम अभी थोड़े ही
समय पहिले हुआ है, जैसे-खाया है, मारा है, पढ़ाया है, इत्यादि । (५) सन्दिग्धभूत उसे कहते हैं जिस से पहिले हो चुके हुए कार्य में सन्देह
पाया जावे, जैसे-खाया होगा, मारा होगा ॥ (६) हेतुहेतुमद्भूत उसे कहते हैं जिसमें कार्य और कारण दोनों भूत काल में
पाये जावें, अर्थात् कारण क्रिया के न होने से कार्य क्रिया का न होना बतलाया जावे, जैसे-यदि वह आता तो मैं कहता, यदि सुवृष्टि होती तो
सुभिक्ष होता, इत्यादि ॥ २-भवि यत् काल उसे कहते हैं जिसका आरंभ न हुआ हो अर्थात् होनेवाली क्रिया को भविष्यत् कहते हैं, इसके दो भेद हैं-सामान्यभविष्यत् और सम्भाव्यभविष्यत् ॥
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