Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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प्रथम अध्याय ।
शब्द का पुनः २ प्रयोग नहीं करना पड़ता है, जैसे-मोहन आया और वह अपनी पुस्तक ले गया, यहां मोहन का पुनः प्रयोग नहीं करना पड़ा
किन्तु उस के लिये वह सर्वनाम लाया गया । (३) जो संज्ञा के गुण को अथवा उस की संख्या को बतलाता है उसे विशेषण कहते हैं, जैसे-लाल, पीली, दो, चार, खट्टा, चौथाई,
पांचवां, इत्यादि । (४) जिस से करना, होना, सहना, आदि पाया जावे उसे क्रिया कहते हैं।
जैसे-खाता था, मारा है, जाऊंगा, सो गया, इत्यादि ॥ (५) जिसमें लिङ्ग, वचन और पुरुष के कारण कुछ विकार अर्थात् अदल
बदल न हो उसे अव्यय कहते हैं, जैसे-अब, आगे, और, पीछे, ओहो, इत्यादि ॥
संज्ञाका विशेष वर्णन । १-संज्ञ के स्वरूप के भेद से तीन भेद हैं-रूढि, यौगिक और योगरूढि ॥ (१) रूढि संज्ञा उसे कहते हैं जिसका कोई खण्ड सार्थक न हो, जैसे
हाथी, घोड़ा, पोथी, इत्यादि । (२) जो दो शब्दों के मेल से अथवा प्रत्यय लगा के बनी हो उसे यौगिक
संज्ञा कहते हैं, जैसे- बुद्धिमान् , बाललीला, इत्यादि ॥ (३) योगरूढि संज्ञा उसे कहते हैं-जो रूप में तो यौगिक संज्ञा के समान
दीखती हो परन्तु अपने शब्दार्थ को छोड़ दूसरा अर्थ बताती हो,
जैसे-पङ्कज, पीताम्बर, हनूमान् , आदि ॥ २-अर्थक भेदसे संज्ञाके तीन भेद हैं-जातिवाचक, व्यक्तिवाचक और भाववाचक ॥ (१) जातिवाचक संज्ञा उसे कहते हैं-जिस के कहने से जातिमात्र का बोध
हो, जैसे-मनुष्य, पशु, पक्षी, पहाड़, इत्यादि ॥ (२ व्यक्तिवाचक संज्ञा उसे कहते हैं जिस के कहने से केवल एक व्यक्ति(मु.
ख्यनाम)का बोध हो, जैसे-रामलाल, नर्मदा, रतलाम, मोहन, इत्यादि । भाववाचक संज्ञा उसे कहते हैं जिस से किसी पदार्थ का धर्म वा स्वभाव जाना जाय अथवा किसी व्यापार का बोध हो, जैसे-ऊंचाई, चढ़ाई. लेनदेन, बालपन, इत्यादि ।
सर्वनामका विशेष वर्णन । सर्वनाम के मुख्यतया सात भेद हैं-पुरुषवाचक, निश्चयवाचक, अनिश्चय. वाचक, प्रश्नवाचक, सम्बन्धवाचक, आदरवाचक तथा निजवाचक । ५-पुरुषवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं -जिस से पुरुष का बोध हो, यह तीन प्रकार का है-उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और अन्यपुरुष ॥ (१) जो कहनेवाले को कहे-उसे उत्तमपुरुष कहते हैं, जैसे मैं ॥
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