Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा। नम्बर ॥ नियम ॥ [ विसर्गद्वारा शब्दोंका मेल ॥ २ यदि इकार उकार पूर्वक विसर्ग से निः+कारण=निष्कारण । निः+चल परे क्, ख्, दू, , फ, रहे तो निश्चल। निः+तार=निस्तार । निः+फल मूर्धन्य ष, च, छ, रहे तो तालव्य | =निष्फल । निः+छल=निश्छल । निः+ शू और त्, थ, रहे तो दन्त्य स पाप-निष्पाप । निः+टङ्क-निष्टक, हो जाता है ॥
इत्यादि। ३ यदि इकार उकार पूर्वक विसर्ग से निः+विघ्ननिर्विघ्न । निः+बल=निर्बल।
परे प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, निः+मल-निर्मल । निः+जल-निर्जल। पांचवां अक्षर वा स्वर वर्ण रहे तो निः+धन=निर्धन, इत्यादि ।
र होता है। ५ यदि इकार उकार पूर्वक विसर्ग से | निस-नीरस । निः+रोग=नीरोग ।
परे रेफ हो तो विसर्गका लोप | निः+राग-नीराग । गुरुः रम्यः गुरूहोकर पूर्व स्वर को दीर्घ हो | रम्यः, इत्यादि ॥ जाता है ॥ यह प्रथम अध्यायका वर्णविचार नामक तीसरा प्रकरण समाप्त हुआ ॥
चौथा प्रकरण ।
(शब्दविचार) १-शब्द उसे कहते हैं-जो कान से सुनाई देता है, उस के दो भेद हैं:(१) वर्णात्मक अर्थात् अर्थबोधक-जिसका कुछ अर्थ हो, जैसे-माता, पिता, __घोड़ा, राजा, पुरुष, स्त्री, वृक्ष, इत्यादि ॥ (२) ध्वन्यात्मक अर्थात् अपशब्द-जिसका कुछ भी अर्थ न हो, जैसे-चक्की
या बादल आदि का शब्द ॥ २-व्याकरण में अर्थबोधक शब्द का वर्णन किया जाता है और वह पांच प्रकार
का है-संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय ॥ (१) किसी दृश्य वा अदृश्य पदार्थ अथवा जीवधारी के नाम को संज्ञा कहते
हैं. जैसे-रामचन्द्र, मनुष्य, पशु, नर्मदा, आदि ॥ (२) संज्ञा के बदले में जिस का प्रयोग किया जाता है उसे सर्वनाम कहते हैं,
जैसे—मैं, यह, वह, हम, तुम, आप, इत्यादि । सर्वनाम के प्रयोग से वाक्य में सुन्दरता आती है, द्विरुकि नहीं होती अर्थात् व्यक्तिवाचक
१. जो दीख पडे उसे दृश्य तथा न दीख पडे उसे अदृश्य कहते हैं ।
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