Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
(२) जो सुननेवाले को कहे उसे मध्यम पुरुष कहते हैं, जैसे तू ॥
(३) जिस के विषय में कुछ कहा जाय उसे अन्यपुरुष कहते हैं, जैसे- वह, इत्यादि ॥
२- निश्चयवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं जिससे किसी बात का निश्चय पाया जावे, इसके दो भेद हैं-निकटवर्ती और दूरवर्ती ॥
(१) जो पास में हो उसे निकटवर्ती कहते हैं, जैसे यह ॥
(२) जो दूर हो उसे दूरवर्ती कहते हैं, जैसे वह ॥
३- अनिश्चयवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं- जिस से किसी बात का निश्चय न पाया जावे, जैसे - कोई, कुछ, इत्यादि ॥
४- प्रश्नवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं-जिस से प्रश्न पाया जावे, जैसे—कौन, क्या, इत्यादि ॥
५- सम्बन्धवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं-जो कही हुई संज्ञा से सम्बन्ध बतलावे, जैसे - जो, सो, इत्यादि ॥
६ - आदरसूचक सर्वनाम उसे कहते हैं- जिस से आदर पाया जावे, जैसे - आप,
इत्यादि ॥
७- निजवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं- जिस से अपनापन पाया जावे, जैसेअपना इत्यादि ॥
विशेषण का विशेष वर्णन ।
विशेषण के मुख्यतया दो भेद हैं- गुणवाचक और संख्यावाचक ॥
- काला,
१ - गुणवाचक विशेषण उसे कहते हैं- जो संज्ञा का गुण प्रकट करे, जैसे-व नीला, ऊंचा, नीचा, लम्बा, आज्ञाकारी, अच्छा, इत्यादि ॥
२ - संख्यावाचक विशेषण उसे कहते हैं जो संज्ञा की संख्या बतावे, इस के चार भेद हैं- शुद्धसंख्या, क्रमसंख्या, आवृत्तिसंख्या, और संख्यांश ॥
(१) शुद्धसंख्या उसे कहते हैं जो पूर्ण संख्या को बतावे, जैसे एक, दो, चार ॥ (२) क्रमसंख्या उसे कहते हैं जो संज्ञा का क्रम बतलावे, जैसे - पहिला, दूसरा, तीसरा, चौथा, इत्यादि ॥
(३) आवृत्तिसंख्या उसे कहते हैं जो संख्या का गुणापन बतलावे, जैसे-दुगुना, चौगुना, इत्यादि ॥
(४) संख्यांश उसे कहते हैं जो संख्या का भाग बतावे, जैसे पंचमांश, आधा, तिहाई, चतुर्थांश, इत्यादि ॥
क्रिया का विशेष वर्णन ।
क्रिया उसे कहते हैं जिस का मुख्य अर्थ करना है, अर्थात् जिस का करना, होना, सहना, इत्यादि अर्थ पाया जावे, इस के दो भेद हैं-सकर्मक और अकर्मक ॥।
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