SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ जैनसम्प्रदायशिक्षा | (२) जो सुननेवाले को कहे उसे मध्यम पुरुष कहते हैं, जैसे तू ॥ (३) जिस के विषय में कुछ कहा जाय उसे अन्यपुरुष कहते हैं, जैसे- वह, इत्यादि ॥ २- निश्चयवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं जिससे किसी बात का निश्चय पाया जावे, इसके दो भेद हैं-निकटवर्ती और दूरवर्ती ॥ (१) जो पास में हो उसे निकटवर्ती कहते हैं, जैसे यह ॥ (२) जो दूर हो उसे दूरवर्ती कहते हैं, जैसे वह ॥ ३- अनिश्चयवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं- जिस से किसी बात का निश्चय न पाया जावे, जैसे - कोई, कुछ, इत्यादि ॥ ४- प्रश्नवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं-जिस से प्रश्न पाया जावे, जैसे—कौन, क्या, इत्यादि ॥ ५- सम्बन्धवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं-जो कही हुई संज्ञा से सम्बन्ध बतलावे, जैसे - जो, सो, इत्यादि ॥ ६ - आदरसूचक सर्वनाम उसे कहते हैं- जिस से आदर पाया जावे, जैसे - आप, इत्यादि ॥ ७- निजवाचक सर्वनाम उसे कहते हैं- जिस से अपनापन पाया जावे, जैसेअपना इत्यादि ॥ विशेषण का विशेष वर्णन । विशेषण के मुख्यतया दो भेद हैं- गुणवाचक और संख्यावाचक ॥ - काला, १ - गुणवाचक विशेषण उसे कहते हैं- जो संज्ञा का गुण प्रकट करे, जैसे-व नीला, ऊंचा, नीचा, लम्बा, आज्ञाकारी, अच्छा, इत्यादि ॥ २ - संख्यावाचक विशेषण उसे कहते हैं जो संज्ञा की संख्या बतावे, इस के चार भेद हैं- शुद्धसंख्या, क्रमसंख्या, आवृत्तिसंख्या, और संख्यांश ॥ (१) शुद्धसंख्या उसे कहते हैं जो पूर्ण संख्या को बतावे, जैसे एक, दो, चार ॥ (२) क्रमसंख्या उसे कहते हैं जो संज्ञा का क्रम बतलावे, जैसे - पहिला, दूसरा, तीसरा, चौथा, इत्यादि ॥ (३) आवृत्तिसंख्या उसे कहते हैं जो संख्या का गुणापन बतलावे, जैसे-दुगुना, चौगुना, इत्यादि ॥ (४) संख्यांश उसे कहते हैं जो संख्या का भाग बतावे, जैसे पंचमांश, आधा, तिहाई, चतुर्थांश, इत्यादि ॥ क्रिया का विशेष वर्णन । क्रिया उसे कहते हैं जिस का मुख्य अर्थ करना है, अर्थात् जिस का करना, होना, सहना, इत्यादि अर्थ पाया जावे, इस के दो भेद हैं-सकर्मक और अकर्मक ॥। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy