Book Title: Jain Ramayana Purvarddha
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Bhimsen Shah

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Page 12
________________ २ और ( 'धिक्कार' ) दंड स्थापन करते है । इस तरह झगड़ों को शान्त करते हैं । जब इस से भी आगे अधिक झगड़ा बढ़ गया तो १५ वें श्री नामक अपर नाभि नामक कुलकर को विशेष अधिकार दिये गये । इस लिये इनका नाम कुलकर है और (मनु) भी इनको कहते है । इन मे १५ वे कुलकर को नाभिराजा भी कहते है । नाभिराजा की स्त्री मरुदेवीजी ने एक श्रेष्ठ और अति उत्तम पुत्र को जन्म दिया । जिनका नाम श्री आदिनाथ रखा गया । जब ये बड़े हुए तब इनके पिता ने इनकी शादी दो सुन्दर कन्याओ से की । एक का नाम सुमंगला और दूसरी का नाम सुनन्दा | श्री सुमंगला के बड़े पुत्र का नाम भरत था और पुत्री का नाम ब्रह्म । सुनन्दाजी ने एक पुत्र का जन्म दिया उनका नाम बाहुबली था और कन्या का नाम सुन्दरी था। वैसे तो अकर्म भूमि से कर्म भूमि पन्द्रहवें कुलकर से ही प्रारम्भ हो गई थी, परन्तु श्री आदिनाथ जी ने जनता को अनाज बोना बर्तन बनाना, खाना पकाना मकानादि बनाना, वास्त्रदि बनाना, आवश्यक शिल्प कला व्यवहार आदि की शिक्षा दी । इस तरह सर्व प्रकार के सुधारो का प्रादुर्भाव श्री ऋषभदेव जी ने किया । इसी कारण इस काल के आदिनाथ कहलाये । प्रजा ने आदिनाथ को अपना राजा बना लिया | आदिनाथ ने राजनीति चलाने के बाद धर्म नीति स्थापना की, धर्म दान से होता है । इस कारण एक वर्ष तक ऋषभदेवजी ने निरंतर दान दिया, स्वयं आदर्श दानी बनने के पश्चात् अपने पुत्रों को राजपाट बांट कर संसार का त्याग कर मुनिपद को धारण किया । बहुत काल भ्रमण के बाद चार घातिक कर्मो का नाश कर केवल ज्ञान को प्राप्त किया । और चार तीर्थ की स्थापना करके मुनि और गृहस्थ दो प्रकार का धर्म संसार रूपी समुद्र से तैरने को बतलाया । तीसरा रा कुछ शेष रहने पर सर्व कर्मों को काट कर मोक्ष को प्राप्त हुए । सिद्ध बुद्ध सच्चिदानंद हुए । '

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