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जैनधर्म और तान्त्रिक साधना २४ हिन्दू देवी-उपासना या शक्ति-उपासना का ही संशोधित रूप है। जिस प्रकार हिन्दूधर्म में प्रत्येक देवता की शक्ति के रूप में देवी की कल्पना आई-उसी प्रकार जैन धर्म में प्रत्येक तीर्थंकर की शक्ति के रूप में यक्षियों को जोड़ा गया। फिर भी यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि ये यक्षियाँ तीर्थंकरों का अंश नहीं हैं। ये स्वतंत्र हैं और मात्र तीर्थंकरों की उपासिकाए हैं। इस प्रकार जैन परम्परा में क्रमशः सोलह महाविद्याओं, चौबीस यक्षियों, दस दिक्पालों, नौ ग्रहों और क्षेत्रपालों के रूप में अनेक हिन्दू देव-देवियाँ समाहित कर लिए गए हैं।
. यक्ष-यक्षियों के साथ-साथ जैन मंदिरों में सोलह महाविद्याओं के भी अंकन उपलब्ध होते हैं। महाविद्याओं के ये अंकन खजुराहो के दिगम्बर मंदिरों के अतिरिक्त प्रायः श्वेताम्बर मंदिरों में अधिक लोकप्रिय हुए । यद्यपि महाविद्याओं की साधना के अनेकों संदर्भ जैन ग्रंथों में उपलब्ध होते हैं किन्तु जैन मंदिरों में इनकी पूजा, उपासना की परम्परा जीवित नहीं है, मात्र कुछ आचार्य वैयक्तिक रूप से इनकी साधना करते हैं। किन्तु शासनदेवता के रूप में यक्ष-यक्षियों तथा क्षेत्रपालों के रूप में भैरवों की उपासना जैन परम्परा में आज भी जीवित है। वर्तमान में भी भोमियाजी, नाकोड़ाजी आदि भैरव, घण्टाकर्णमहावीर, मणिभद्रवीर आदि यक्ष अतिप्रभावक माने जाते हैं। इसी प्रकार अष्टदिकपाल और नौ ग्रहों को भी जैन देव मण्डल में सम्मिलित कर लिया गया था। इनके भी पूजाविधान एवं अंकन जैन मंदिरों में उपलब्ध होते हैं।
आश्यर्चजनक तथ्य यह भी है कि जैनदेवकुल में लगभग छठी-सातवीं शताब्दी के पश्चात् चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव और नौ प्रतिवासुदेव इन तिरसठ शलाका पुरुषों के अलावा चौबीस कामदेवों, नौ नारदों, एवं ग्यारह रुद्रों की चर्चा मिलती है, यद्यपि चौबीस कामदेव, नौ नारद
और ग्यारह रुद्रों के उल्लेख प्रायः दिगम्बर परम्परा के ग्रंथों में ही मिलते हैं। तिलोयपण्णत्ति (४/१४७२) में मात्र इतना निर्देश उपलब्ध होता है कि २४ तीर्थंकरों के समय में अनुपम आकृति के धारक बाहुबली प्रमुख चौबीस कामदेव होते हैं। कामदेवों के अतिरिक्त नौ नारदों का भी उल्लेख उपलब्ध होता है। नौ नारदों के नाम हैं- भीम, महाभीम, रुद्र, महारुद्र, काल, महाकाल, दुर्मुख, नरकमुख और अधोमुख (तिलोयपण्णत्ति, ४/१४६६)। इसी प्रकार ग्यारह रुद्रों के भी निर्देश उपलब्ध हैं। इनके नाम हैं- भीमावली, जितशत्रु, रुद्र, वैश्वानर, सुप्रतिष्ठ, अचल, पुण्डरीक, अजितंधर, अजितनाभि, पीठ, और सात्यकि पुत्र (तिलोयपण्णत्ति, ४/१४३६-४४)। इन रुद्रों के सन्दर्भ में यह मान्यता है कि ये रुद्र विद्यानुवाद पूर्व, जिसे तांत्रिक साधना का ग्रंथ माना गया है, का अध्ययन
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