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कल्पना करें इस दृश्य की ! भावपूर्वक कल्पना करके मानो हम उस स्थल पर पहुँच गये हैं, और यह दृश्य, ये देवाधिदेव, और यह देशना देखकरसुनकर श्रानन्द अनुमोदन के महासागर में स्नान कर रहे हैं। ऐसा भाव हृदय में स्फुरित हो तो साक्षात् जैसा लाभ हो; अपूर्व कर्म निर्जरा हो तथा आत्मविशुद्धि हो ।
११ ब्राह्मण - भात्री गणधर : - इस प्रपापा में सोमिल नामक एक धनी ब्राह्मण यज्ञ करवाता था । इसमें उसने वेद शास्त्र के पंडित, चौदह विद्या के निष्णात ऐसे मुख्य ११ ब्राह्मणों को श्रामंत्रित किया था । इनमें प्रत्येक के साथ कड़ों विद्यार्थियों का परिवार था । ग्यारह में से प्रत्येक अपने आप को सर्वज्ञ मानता था, परन्तु कभी यह थी कि वेदों के अन्दर विरुद्ध दिखाई देने वाले वचनों से प्रत्येक को भिन्न २ तत्वों पर संदेह होता था । फिर भी स्वयं को सर्वज्ञ मानने की मूर्खता किस आधार पर ? भारी परिश्रम से विद्योपार्जन किया, अनेक शास्त्रों में विजय प्राप्ति की, इससे गहन आत्मविश्वास था, और - सर्वज्ञ शब्द का बारीक व्युत्पत्ति श्रर्थं उनके ध्यान में नहीं था अथवा उसका मोटा मोटा अर्थ जानते थे, इसीलिये न ?
११ संदेह :- ११ ब्राह्मणों में (१) इन्द्रभूति गौतम को जीव का संदेह था । 'जगत में स्वतन्त्र सनातन श्रात्मा जैसी वस्तु है या क्या ?' ऐसी शका इनके मन में थी । (२) ब्राह्मण पंडित अग्निभूति गौतम को कर्म का संदेह था, अर्थात् जीव ही का किया हुआ काम होता है या कर्म का किया हुआ ? कर्म - सत्ता जैसी भी कोई वस्तु होती है क्या ?' ऐसी शंका थी । (३) वायुभूति गातम के मन में तज्जीव तत् शरीर अर्थात् यह देह हीं जीव है अथवा जीव देह से भिन्न है ?' - ऐसी शंका थी । ये तीनों ब्राह्मण भाई थे और प्रत्येक के साथ ५००-५०० विद्यार्थियों का परिवार था । ( ४ ) व्यक्त पंडित को पांच भूत के विषय में संदेह था, अर्थात् 'पृथ्वी, पानी आदि जो पांच भूत जगत में माने जाते हैं वे सत्य हैं प्रथवा स्वप्नवत् ?' ऐसी शंका थी । (५) सुधर्माविद्वान् को
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