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चौथे गणधर-व्यक्त
पंचभूत सत् हैं ?
अब चौथे व्यक्त नामक ब्राह्मण प्रभु के पास पाए । प्रभु ने इनके मन का संदेह कहा कि 'स्वप्नोपमं वै जगत्' इत्यादि वेद पंक्ति से तुम्हें हुअा कि जगत्-मान्य पंचभूत स्वप्नवत् मिथ्या हैं, अर्थात् सत् नहीं; और दूसरी ओर 'पृथ्वी देवता, पापो देवता....' आदि वचन से देवतारूप भूत सत् होने का लगा, इससे शंका हुई कि "पंचभूत सत् होंगे अथवा असत् ?' दृश्य भूत में भी संदेह होता है तो फिर प्रात्मा का तो पूछना ही क्या ? अर्थात् क्या सभी शून्य ही
सब असत् होने में यह तर्क प्राप्त हुपा:'सर्व शून्यं' का तर्क; - वस्तु असत् है; क्योंकि(१) वस्तु परस्पर सापेक्ष है । (२) इसमें सत्व का संबंध अघटित है। (३) इसकी उत्पत्ति अघटित है। (४) इसकी उत्पादक सामग्री अघटित है। (५) इसका प्रत्यक्ष अघटित है ।
(१) वस्तु की सिद्धि सापेक्ष है; क्योंकि सत् वस्तु स्वतः या परतः अथवा स्व पर उभयतः सिद्ध होती है। अब वस्तु चाहे कारणरूप हो अथवा
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