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(३) शून्यता का विज्ञान के वचन सर्वपा मनुत्पम्म हो तो शून्यता किसने प्रकाशित की ?
(४) वस्तु स्थिति यह है कि-(i) नया होने वाला घड़ा विवक्षा से कुछ उत्पन्न, कुछ अनुत्पन्न, उभय भी और कुछ उत्पद्यमाम जन्म लेता है । घड़ा मिट्टी के रूप में पहिले उत्पन्न रह कर जन्मता है और विशिष्ट प्राकृति के रूप में पहिले अनुत्पन्न रह कर जन्म लेता है; क्योंकि मिट्टी रूप व तुम्बाकार प्राकृति से घड़ा अभिन्न है । मिट्टी रूप से पहिले है अतः घड़ा है ही । वहां आकृति नहीं तो इस रूप में तब घड़ा नहीं । रूप, आकृति उभय अपेक्षा से उत्पन्न-अनुत्पन्न है और वर्तमान समय की अपेक्षा से उत्पद्यमान उत्पन्न है; अन्यथा क्रिया निष्फल जाए।
(ii) जब कि पूर्व उत्पन्न हो चुका घड़ा अब घटरूप में चारों विकल्पों से अर्थात् उत्पन्न, अनुत्पन्न, उभय अथवा उत्पद्यमान नहीं होता, क्योंकि स्व द्रव्य घटरूप से या स्वपर्याय लाल, बड़ा, हल्का इत्यादि रूप से तो हो हो चुका है, तो बनने का क्या ? और परद्रव्य पटादि स्वरूप से या पर पर्याय से कभी भी नहीं हो सकता; अन्यथा पररूप ही हो जाये । सारांश, उत्पन्न हो चुके घडे आदि के संबंध में अब उत्पन्न का प्रश्न फजूल है । वैसे यह पूछना भी फजूल है कि उत्पन्न वस्तु, अनुत्पन्न, उभय प्रथया वर्तमान समय में उत्पद्यमान है या नहीं ? और उत्पद्यमान के लिए वे ही चार प्रश्न यदि करें तो हम कहेंगे कि वह पररूप में उत्पन्न नहीं होता । इस प्रकार सदा विद्यमान प्राकाश तो प्राकाश रूप में चारों में से एक भी विकल्प से उत्पन्न नहीं होता। इस प्रकार अनुत्पन्न भी घट स्व द्रव्यरूप में सदा अवस्थित है। इसलिए वह उस रूप में नया उत्पन्न होने का नहीं।
यह तो मूल स्व द्रव्यरूप में घट:-आकाश की बात हुई। पर्याय-चिन्ता में, परपर्याय-रूप में चारों विकल्पों से कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। स्वपर्याय में भी जो उत्पन्न हो चुका है वह उसी स्व-पर्याय रूप में भी अब नया उत्पन्न नहीं होता है; और अनुत्पन्न स्व पर्यायरूप में उत्पन्न हो सकता है ।
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