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विशिष्ट कारण प्रा मिलने से ज्ञानावरण कर्म का भारो क्षयोपशम हुआ, और वहीं द्वादशांगी आगम तथा तदन्तर्गत चौदह पूर्वो की रचना की । प्रभु ने इस पर सत्यता की और अन्य को पढाने की मुद्रिका अकित करते हुए वासक्षेप किया। इस प्रकार ये ग्यारहों ही गणधर महर्षि बने ।
आत्मा-कर्म-पंचभूत-परलोक-बंध-मोक्ष आदि तत्व समझ कर इनका ज्ञान आत्मसात् करें व निजी अविनाशी प्रात्मा को बंधन-मुक्त करने का ही मुख्य पुरुषार्थ सभी करे-इसी शुभेच्छा के साथ इस लेख में मतिमंदतादि कारणों से जिनाज्ञा-विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो उसके लिए मिच्छा मि दुक्कडं ।
-पू० गुरुदेव सिद्धान्तमहोदधि प्राचार्यदेव श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी के शिष्याणु
भानुविजय
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