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छठे गणधर - मंडित बंध - मोक्ष हैं ?
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छठे मंडित ब्राह्मण श्राए । इन्हें प्रभु कहते हैं, 'तुम्हें दो प्रकार की वेदपंति मिलों, स एष विगुणो विभुर्न बध्यते, न संसरति वा, न मुच्यते मोचयति वा........' 'न ह वै सशरीरस्य प्रियाप्रिययोरपहतिरस्ति इनमें से एक में मिला कि 'यह व्यापक सत्व- रजो - तमोगुण से रहित श्रात्मा न तो बन्धन में श्रती श्रौरन संसार के परिवर्तन से परिवर्तित होती, न मोक्ष प्राप्त करती श्रीर न मुक्त करवाती ।' जब कि दूसरी श्रोर यह मिला कि 'शरीरधारी आत्मा को सुख दुःख का नाश नहीं, अर्थात् श्रात्मा शरीर में बद्ध होती है, सुख दुःख के परिबर्तन भी पाती है और शरीर से जब मुक्त होती है तब यह जंजाल नहीं रहता।' इससे तुम्हें संशय हुआ कि जीव के बंध श्रोर मोक्ष होते होंगे या नहीं ?
पूर्व पक्ष:- बंध-मोक्ष नहीं :--
जीव के बंध नहीं होता इसके समर्थन में यह विचाररणा श्राती है कि 'बंध अर्थात् जीव का कर्म के साथ योग । परन्तु ये जीव व कर्म दोनों एक दूसरे के साथ ही होते हैं अथवा श्रागे पीछे ?
(१) 'पहिले जीव, पीछे कर्म' यह घटित नहीं होता, क्यों कि तब तो जीव या तो (i) कारण बिना जन्मा हो, या (ii) अनादि का हो। परन्तु (i) पहले विकल्प में, कारण बिना कार्य की उत्पत्ति नहीं होती । जो उत्पन्न होता
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