Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhanuvijay
Publisher: Jain Sahitya Mandal Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 98
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संसार रिक्त क्यों न हो ? प्र० - अगर भव्यों का मोक्ष हो जाता है तो संसार में से कभी सर्वथा भव्योच्छेद हो जाना चाहिये ! जैसे भंडार में से एक एक भी दाना निकालतेनिकालते वह खाली हो जाता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ०- नहीं, काल की भांति भव्य - राशि अनन्त है । समय समय व्यतीत होते हुए भी काल का उच्छेद नहीं, ऐसे ही भव्य जीवों का भी नहीं, भले प्रति छः माह में कम से कम एक तो मोक्ष गमन करे ही । प्र० - काल सीमित नहीं, भव्य तो सीमित हैं । जगत में जितने भव्य हैं, उतने ही हैं, नए बढ़ने के नहीं, फिर श्रनन्तानंत व्यतीत होने पर तो इनका प्रभाव हो न ? - मोक्ष न पाने वाले ८७ उ०- नहीं, आज से लगाकर भावी चाहो जितना अनन्तानन्त काल लो, वह तो परिमित ही है, जब कि प्रतीत काल की तो आदि ही न होने से अपरिमित है । अब सोचो कि अपरिमित काल में जो रिक्त होना था वह नहीं हुआ, वह इस परिमित काल में कैसे रिक्त होगा ? यह तो भविष्य में भी जब पूछा जाएगा तब यही उत्तर रहेगा कि 'एक निगोद ( श्रनन्त जीवों के शरीर) में रही हुई जीव राशि की अपेक्षा श्रनन्तवें भाग की संख्या में ही जीव मोक्ष गए हैं। सर्वज्ञ के अन्य कथन की भांति यह कथन भी सत्य ही मानना चाहिए । प्र० उ० सभी प्रभव्य क्यों नहीं ? वाले ऐसा है । अर्थात् तपसंयमादि सामग्री मिले तो - 'भव्य' का अर्थ मोक्ष पाने वाले ऐसा नहीं, किन्तु पाने की योग्यता प्राप्त कर सकें ऐसे जीव भव्य है । जिन्हें वे सामग्री नहीं मिली इतने मात्र से वे जीव अभव्य नहीं । जैसे प्रतिमा के योग्य काष्ठ को सामग्री न मिली तो प्रतिमा नहीं बनेगी, परन्तु इससे इसे प्रयोग्य नहीं गिन सकते । प्र० - 'मोक्ष 'उत्पन्न' हुआ तो फिर 'नष्ट' क्यों न हो ?' उ०- जैसे ध्वंस उत्पन्न होने के पश्चात् नष्ट नहीं होता, वैसे ही मोक्ष भी नष्ट नहीं होता है । प्रथवा मोक्ष उत्पन्न होने जैसा क्या है ? श्रात्मा का For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128