________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नौवें गणधर - अचल भ्राता क्या पुण्य-पाप हैं ?
अब नवें अचल भ्राता ब्राह्मण से प्रभु कहते हैं, - 'पुरुषेवेदं ग्नि' सर्व' जो कुछ है वह पुरुष ही है इत्यादि वेद वचच से तुम्हें पुण्य-पाप जैसी वस्तु होने के विषय में शंका हुई । इसमें -
पुण्य पाप के सम्बन्ध में पांच विकल्प, पांच मत उपस्थित हुए:- (१) केला पुण्य ही होता है, पाप नहीं, (२) श्रकेला पाप ही होता है, पुण्य नहीं, (३) पुण्य-पाप विविध रंगमय मरिण की भांति मिश्रित ही रहकर संमिश्र सुखदुःख देते हैं, (४) पुण्य-पाप स्वतन्त्र रहकर भिन्न भिन्न फल सुख और दुःख देते हैं, (५) पुण्य प्रथवा पाप कुछ भी नहीं, स्वभाव से सुख या दुःख मिलता है । इसमें (१) प्रथम विकल्प में प्रश्न हो कि अकेले पुण्य में, दुःख कैसे मिले? इसका उत्तर यह है कि पथ्य श्राहार की भांति पुण्योदय की वृद्धि में सुख बढ़ता है और हानि में दुःख बढ़ता है, जब कि (२) द्वितीय विकल्प में कुपथ्य श्राहार की भांति जैसे पापोदय बढ़ता है वैसे दुःख भी बढ़ता है, पापोदय के घटते ही दुःख का क्षय हो जाता है, और उसका स्थान सुख ले लेता है । दोनों विकल्पों में पुण्य-पाप का अत्यन्त क्षय होने पर मोक्ष हो जाता है । (३) तीसरे विकल्प में पुण्य की मात्रा बढ़ जाय तो अकेली 'पुण्य' की संज्ञा से पहिचान होती है । इसी तरह अधिक पाप - मात्रा में इससे विपरीत । (४) चौथा विकल्प इसलिए
६५
For Private and Personal Use Only