________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५) यदि सभी असत् है, तो नियत व्यवहार का उच्छेद हो जायेगा या अनुपपत्ति, अघटमानता होगी। तेल यह तिल प्रादि सामग्री में से ही क्यों ? बालू में से क्यों नहीं ? गगनारविंद में से कार्य क्यों न हों? अमुक अमुक के ही कार्य-कारण भाव दीखते हैं, दूसरों के नही, यह कार्य शून्य सामग्री में से नहीं, किन्तु वैसे वैसे स्वभाव वाली सत् सामग्री में से ही होते हैं तभी बन सकता है।
___(४) तथा सभी सामग्रीमय है सामग्रीजन्य है-ऐसा भी कहना अनुपयुक्त है; क्योंकि परमाणु किसी से उत्पाद्य नहीं, फिर भी दृश्यमान स्थूल कार्य पर से यह सिद्ध है ऐसी वस्तु स्थिति है, अन्यथा 'सभी सामग्रीजन्य' कह कर और 'अणु है ही नहीं' कहना यह तो 'सर्व वचन असत्य है' कहने जैसा स्व वचन से ही बाध्य है, क्योंकि सामग्री की अन्तर्गत तो परम्परा से अणु पाएंगे हो । मूल में अशु ही न हों तो सामग्री बिना द्वयगुकादि कैसे बनेंगे ? यदि अणु को भी बनता मानो, तो किस सामग्री में से ? शून्य में से सृष्टि होती नहीं, अन्यथा कोई नियम ही न रहे ।
(५) वस्तु का पिछला भाग नहीं दीखता:
(१) 'पर भाग नहीं दीखता अतः अग्र भाग नहीं'-यह कैसा अनुमान ? उल्टा अग्र भाग दीखने से परभाग सिद्ध होता है।
___ पिछला भाग है अतएव अमुक 'अन भाग' कहलाते है। यदि पिछला नहीं तो प्रगला क्या ? अतः अनुमान से निश्चित सिद्ध ऐसे पिछले भाग का अपलाप करने से अगले भाग का प्रतिपादन स्ववचन-विरुद्ध होगा।
(२) कहा कि 'वस्तु का अगला ही भाग दीखता है अतः वस्तु नहीं' इसमें दीखता है और नहीं, ऐसा कहना विरुद्ध है। भ्रान्ति से दीखना कहते हो तो गगनपुष्प का अग्रभाग क्यों नहीं दीखता ?
(३) सर्व शन्य तो अर्वाग्-पर, अगला-पिछला इत्यादि भेद कैसे ? यदि कहते हो कि 'पर मत की अपेक्षा से, तो सर्वशून्य' मत में स्वमत-परमत का भी भेद है क्या? इसी तरह भी यदि यह भेद सत् होना स्वीकार्य, तो सर्व शून्यता का भंग ! यदि अस्वीकार्य हो फिर भी व्यवहार मानो, तो प्राकाशकुसुम में व्यवहार क्यों नहीं ?
For Private and Personal Use Only