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(४) उत्पादक सामग्री घटित हो सकती है:
(१) 'सर्व ही नहीं होने से सामग्री जैसा कुछ भी है नहीं' यह प्रापका कथन बाधित है, क्यों कि पहले तो यह कथन स्वयं ही कंठ - प्रोष्ठ- तालु प्रादि सामग्री से हुप्रा प्रत्यक्ष दीखता है: तब सामग्री जैसा कुछ नहीं है यह कहां रहा ? प्र० - यह तो श्रविद्यावशात् दीखता है क्योंकि कहा हैकाम - स्वप्न भयोन्मादेरविद्योपप्लवात् तथा । पश्यन्त्यसम्तमध्यर्थ जनः कैशेन्दुकादिवत् ॥
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काम - प्राबल्य, स्वप्न, भय, उन्माद और श्रविद्या ( मतिभ्रम) से लोग श्रांख के आगे केश तंतु की भांति असत् भी वस्तु देखते है ।
उ०-यदि सभी सामग्री असत् होकर ही दोखती हो, तो कछुए के रोम की, गधे के सींग इत्यादि की, सामग्री क्यों नहीं दीखती ? श्रसत् है वास्ते न ? अतः कहिये जो सामग्री दिखती है यह सत् है ।
(२) छाती, मस्तक, कंठ आदि सामग्रीमय वक्ताव शब्दमय वचन और प्रतिपाद्य विषय है या नहीं ? यदि है, तो सर्व शून्य कहां रहा ? यदि नही तो 'सर्व शून्य' किसने सुना? इसी तरह प्रतिपाद्य विषय बिना का कथन वंध्या माता जैसा है। माता का अर्थ ही है पुत्रवती; वह वंध्या कैसी ? कथन अर्थात् जो कुछ कहना है, यह कथनीय रहित ?
(३) प्र०-वक्ता, वचन, कुछ भी सत् है ही नहीं, इसीलिए वाच्यवस्तु नहीं । यही सर्व शून्यता बन सके न ?
(४) यदि कहते हो तो यह स्वीकार सत्य अथवा स्वीकार, स्वीकार्य तत्त्व
उ०- कुछ नहीं । यह बताइये कि ऐसा कहने वाला वचन सत्य या मिथ्या ? यदि सत्य, तो यही सत् ! यदि मिथ्या तो वह अप्रमाण होने से इससे कथित सर्व - शून्यता सिद्ध ठहरती है ।
'चाहे जैसे हमने यह वचन स्वीकार कर लिया है' मिथ्या ? अपरंच सर्व शून्यता में तो स्वीकारकर्ता इत्यादि भी क्या ?
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