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निकली हुई यह क्यों नहीं दिखाई देती ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि पूर्वकथित सूक्ष्मतादि के कारण वस्तु होती हुई भी अदृश्य रहती है ।
(२१) इस प्रकार पूर्व-कथित योग-उपयोग-इच्छा-रागादि व प्रांतरिक सुख-दुःखादि संवेदन ये सब देह की हानि वृद्धि से घटते बढ़ते हों-ऐसा नियम नहीं है। इससे पता चलता है कि ये धर्म देह के नहीं है, परन्तु भिन्न प्रात्मा के हैं। पूर्व जन्म का स्मरण, देह की अपेक्षा प्रात्मा के भिन्न शब्द पर्याय, प्रसंगवश सबसे अधिक प्रिय प्रात्मा के लिए देह का भी. त्याग, इत्यादि हेतु भी भिन्न प्रात्मा को सिद्ध करते हैं।
भगवान के इस प्रकार समझाने से वायुभूति की शंका नष्ट हो गई, और उन्होंने भी अपने ५०० विद्यार्थियों सहित प्रभु के पास चारित्र-ग्रहण किया।
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