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तृतीय विकल्प जैसा दोष है । सारांश यह है कि उत्पत्ति संभवित, अतः वस्तु
श्रसत् ।
(४) वस्तु उपादान और निमित्त कारणों की सामग्री से बनती दिखाई देती है, अर्थात् सब सामग्रीमय दिखाई देता है । परन्तु जहां 'सर्व' जैसा कुछ है ही नहीं, तो सामग्री कैसी ? एवं यदि इन प्रत्येक में जनन - सामर्थ्य नहीं, तो समस्त सामग्री में कैसे हो ? अर्थात् जनन - सामर्थ्य-विहीनों के समूह में भी कारण - सामग्रीपन कैसे घटित हो सकता है ? समूह में इस हृष्टान्त से जननसामर्थ्य नहीं है कि बालू के प्रत्येक करण में तेल नहीं तो समूह में भी नहीं । श्रर अगर प्रत्येक कारण में सामथ्यं हो तो एक एक से भी कार्य होना चाहिए । इस प्रकार उत्पादक सकल सामग्री के प्रसंभव से वस्तु असत् ।
(५) एवं कोई वस्तु प्रदृश्य तो है ही नहीं, क्योंकि दिखाई नहीं देती । तो दृश्य भी नहीं, क्योंकि जो दिखाई देता है वह वस्तु का पिछला नहीं परन्तु ऊपर का ही अथवा अगला ही भाग होता है । यह भाग भी सावयव होने से इसमें भी ऊपरी अथवा अग्रभाग ही दिखाई देता है । इसमें भी इसी प्रकार ... यावत् बिल्कुल ऊपरी अथवा श्रग्रिम परमाणु - पहलु श्राता है और परमाणु तो श्रदृश्य कहते हो । इस प्रकार सर्व अदृश्य ! अतः सर्व शून्य है ।
अब इसका उत्तर देते हैं । 'सर्वं शून्यं' का खंडन
(१) प्रथम तो, अगर सभी वस्तुएं असत् ही होती हों तो पंचभूत हैं या क्या ?' ऐसा संदेह ही क्यों होता है ? क्योंकि असत् अश्वगादि में संदेह नहीं होता कि 'यह श्वश्रृंग है अथवा गर्दभशृंग ? ' और संदेह सत् ही में होता है, जैसे 'यह ठूंठ है अथवा मानव ?' किन्तु असत् में नहीं, ऐसा भेद क्यों ? अतः कहो कि जिसमें संदेह होता है, वह सत् सिद्ध होती है । अन्यथा विपरीत क्यों नहीं ? जैसे कि असत् में ही सदेह की अनुभूति होती है, सत् में नहीं ! ऐसा क्यों नहीं ?
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