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कहते हैं। अग्नि आदि का जो अनुमान लगाया जाता है उसे 'साध्य' कहते हैं। जहां जहाँ हेतु हो वहां वहां साध्य अवश्य हो तो वह सच्चा हेतु है । इसमें हेतु व्याप्य कहलाता है, साध्य व्यापक कहलाता है। हेतु में साध्य की व्याप्ति होती है। दोनों के बीच व्याप्ति संबंध कहलाता है। झोंपड़ी में अग्नि के अनुमान में 'हेतु' धुए का 'साध्य' अग्नि के साथ व्याप्ति संबंध पहिले निश्चित होना चाहिए। यह व्याप्ति-संबंध रसोईघर में देखा हुआ है अतः अन्यत्र झोंपड़ी पर धुपा देखकर अन्दर की अग्नि का अनुमान होता है । जब कि प्रस्तुत में प्रात्मा के साथ कहां किसी का संबंध पहिले प्रत्यक्ष देखा है कि जिस पर अनु. मान लग सके ? आत्मा के संबंध में इन तीनों में से एक भी अनुमान नहीं मिलता, क्योंकि प्रात्मा का कोई कारण, कोई कार्य अथवा कोई साथी नहीं दीखता जिस पर से आत्मा का अनुमान लगाया जाए।
__उपमान और अर्थापत्ति प्रमाण से भी प्रात्मा सिद्ध नहीं-उपमान में "कोई बिना जानी हुई वस्तु अन्य जानी हुई वस्तु जैसी होती हैं' ऐसा जानने पर फिर कभी जब अनजानी वस्तु पर दृष्टि पड़ती है तो पहिचान ली जाती है कि यह अमुक वस्तु है। प्रात्मा के संबंध में ऐसी किसी ज्ञात वस्तु को उपमा घटित नहीं होती अतः उपमान प्रमाण प्रात्म सिद्धि के लिए अनुपयुक्त है।
__ अर्थापत्ति में कोई दृष्ट-श्रु त (देखी-सुनी) वस्तु अमुक वस्तु के बिना घटित न हो सके ऐसी होती है तब इस दृष्ट-श्रु त वस्तु के आधार पर वह वस्तु सिद्ध होती है जैसे किसी हृष्ट पुष्ट व्यक्ति के विषय में कोई कहे कि यह दिन में बिल्कुल खाता ही नहीं तो इस पर सिद्ध होता है कि रात को यह अवश्य खाता होगा । आत्मा की इस प्रकार सिद्धि करने के लिए देखें कि कौनसी दृष्टश्रुत वस्तु इसके बिना घटित नहीं हो सकती तो पाते हैं कि कोई वस्तु ऐसी नहीं है।
संभव-ऐतिह्य प्रमाण से भी प्रात्मा सिद्ध नहीं
संभव प्रमाण उसे कहते हैं जो एक वस्तु में दूसरी वस्तु प्रा जाय उसकी सिद्धि करे। जैसे-किसी के पास लाख रुपये होने का पता चला तो
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