________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५
स्वयं टेढ़ी हो गई। यहां 'हो गई' अर्थात् जन्मी, जन्म पाई, जिससे 'टेढ़ेपन वाली अंगुली हुई' अर्थात् टेढ़ी अंगुली का जन्म हुआ ऐसा कहा जाता है । इसी प्रकार 'ज्ञान उत्पन्न हुआ' अर्थात् 'विज्ञानघन श्रात्मा का जन्म हुआ, ऐसा कह सकते हैं । तो इससे यह हुआ कि पृथ्वी आदि भूतों से विज्ञानघन का ही जन्म होता है। यहां 'विज्ञानघन ही' इसमें 'ही' कहने से आत्मा के अन्य सुखादि स्वरूपों का निषेध किया; अर्थात् भूत से आत्मा में ज्ञान स्वरूप प्रकट होता है परन्तु सुख स्वरूप नहीं, ऐसा सिद्ध हुआ ।
इस प्रकार इन्द्रभूति गौतम का संदेह निवारण हो जाने से उन्होंने देखा कि इस जगत में ऐसे सर्वज्ञ जैसा शरण और कहां मिले ? साथ ही किंचित्कर दूसरों का आधार लेने से भी अंत में वे क्या काम श्राए ? फिर मेरी श्रात्मा का ऐसा स्पष्ट दोषरहित स्वरूप है, तो अब यह पता चलते ही इसकी रक्षा सर्वप्रथम कर लेनी चाहिये अतः 'मुझे वीर प्रभु का शरण हो,' ऐसा निश्चित करके अपने ५०० विद्यार्थियों के साथ प्रभु के पास वहीं का वहीं उन्होंने चारित्र अंगीकार किया, और गृहवास का त्याग कर वे अणगार मुनि बने ।
For Private and Personal Use Only