Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhanuvijay
Publisher: Jain Sahitya Mandal Prakashan

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतः कर्म नहीं दिखाई देते इसी पर से कर्म है ही नहीं ऐसा नहीं कह सकते। (१-ब) अब दूसरा प्रश्न-'कर्म हमें दिखाई नहीं देते अतः कर्म नहीं हैं', ऐसा नहीं कह सकते; क्यों कि भले हमें न दिखाई दें परन्तु दूसरे की दृष्टि में हों ऐसी भी कई चीजें हैं । अतः 'नहीं, किसी को भी दिखाई नहीं देते, अतः कर्म नहीं' ऐसा कहना गलत है; क्यों कि प्रथम तो कहां हमें सभी जीव ही दिखाई देते हैं कि कोई भी कर्म को देखने वाला नहीं है इसका पता चले ? दिखाई पड़ने वाले जीवों में भी कैसा और कितना ज्ञान है यह हम कहां देख सकते हैं ? भविष्य में कोई भी देखने वाला नहीं होगा ऐसा भी कैसे कह सकते हैं ? अतएव इस प्रकार कर्म को स्वीकार न करना उचित नहीं है । तो, 'कमं घटमान नहीं' इसके ३ कारण :(२) 'कर्म जैसी चीज घटित नहीं हो सकती' ऐसा जो कहा इसमें क्या (i) कर्म को ले जाने वाला कोई परलोकी नहीं प्रतः ? या । (ii) भले परलोकगामी कोई हो, तो भी कर्म विचार-संगत नहीं, विचार की कसौटी पर टिक सकती नहीं अतः ? अथवा (iii) क्या ऐसा कहें कि वस्तु के स्वभाव से ही जगत में सब कुछ होता है, अतः कर्म मानने की क्या आवश्यकता है ? (२-i) 'परलोकगामी कोई चीज ही लो नहीं, फिर कर्म को कौन साथ जाए ? और इस जीवन के लिए तो कर्म कुछ भी उपयोगी नहीं',-इस प्रकार नहीं कहा जा सकता, क्यों कि परलोकगामी प्रात्मा सिद्ध हो चुकी है। इसी लिए 'स्वर्ग' की इच्छा वाले के लिए 'अग्निहोत्र यज्ञ करना' प्रादि वेदवाक्य घटित हो सकते हैं; अन्यथा यदि अात्मा ही नहीं तो यज्ञ करके किस का स्वर्गनरक में जाना ? (२-ii) कर्म विचार-संगत नहीं; क्यों कि कर्मो को अनिमित्तक माने ? अथवा सनिमित्तक ? अनिमित्तक अर्थात् कारण सामग्री बिना जन्म लेने वाले । For Private and Personal Use Only

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