Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhanuvijay
Publisher: Jain Sahitya Mandal Prakashan

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मूर्त पुद्गल के साथ संबंध हो बनता है | संबंध बिना कैसे www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सकता है तभी तो वह गति स्थिति में उपकारक बन सकता है ? जैसे कोई अनुग्रह - उपघात नहीं होता, कर्म के अनुग्रह उपग्रह कैसे हो ? ५३ (२) स्थूल शरीर भी श्रात्मा के साथ संबद्ध हुआ हैं ऐसा अनुभव है; अन्यथा जीवित और मृत शरीर के बीच भेद कैसे हो ? इसी प्रकार मूर्त कर्म का आत्मा के साथ संबंध हो सकता है । प्रथवा संसारी प्रात्मा सर्वथा अमूर्त नहीं, किंतु अनादि कर्मप्रवाह के परिणाम में पतित श्रात्मा पूर्व कर्म के क्षीरनीरवत् संबंध में हो कथंचित् मूर्त भी है, इससे उस पर नये मूर्त कर्म का संबंध हो सकता है । इसीलिए तो सर्वथा कर्मरहित बनी हुई मुक्त प्रात्मा अब सर्वथा प्ररूपी होने .से उस पर कर्म संबंध होता नहीं । प्रश्न -चंदन के विलेपन और तलवार के प्रहार से प्ररूपी प्रकाश पर उसी तरह श्ररूपी आत्मा पर शुभाशुभ उत्तर (१) दृष्टांत विषम है; क्यों कि श्राकाश में उन वस्तुनों का, आत्मा में कर्म की भांति, संबंध नहीं है । (२) श्रात्मा में भले बुरे ग्रहारादि के अनुग्रह - उपघात प्रत्यक्ष सिद्ध हैं । (३) श्रमूर्त बुद्धि पर ब्राह्मी -मदिरा के अनुग्रह उपघात होते ही है । वैसे ही आत्मा पर कर्म के अनुग्रह - उपघात हो सकते हैं । प्रश्न – (१) शरीरादि का कर्ता कर्म क्यों ? शुद्ध श्रात्मा (ब्रह्म) अथवा ईश्वर कर्ता क्यों नहीं ? उत्तर- - ( १ ) कुम्हार या लोहार की भांति उपकरण के बिना यह शुद्ध श्रात्मा या ईश्वर क्या कर सकता है ? गर्भावस्था में कर्म बिना अन्य कोई उपकरण संभवित नहीं हैं । रजोवीर्यग्रहण भी कर्म बिना नहीं होता, अन्यथा शुद्ध मुक्त श्रात्मा को भी होना चाहिए । (२) बिना कर्म के शुद्धात्मा अथवा ईश्वर कर्ता नहीं बन सकते, क्योंकि नष्क्रिय है, अमूर्त है, अशरीरी है, व्यापक है, जैसे- श्राकाश; श्रथवा एक है, जैसे एक परमाणु । For Private and Personal Use Only

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