Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhanuvijay
Publisher: Jain Sahitya Mandal Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेद वाक्य का समाधानः- इस प्रकार 'एष वः प्रथमो यज्ञो योऽग्निष्टोमः' यानी 'अग्निष्टोम तुम्हारा प्रथम यज्ञ है' यह वैसा न करने वाले की निंदा का वचन है । इसे सूचित करते है कि यह प्रथम किये बिना अन्य अश्वमेधादि यज्ञ करने से नरकगामी बनना पड़ता है । जिससे सम्हाल रखने की सूचना है । 'द्वादशामासाः संवत्सरः ' बारह महीनों का एक वर्ष होता है यह अनुवाद वचन है; यह मात्र वस्तुस्थिति प्रस्तुत करता है । प्रस्तुत में 'पुरुषवेदं ग्निं सर्व यह वचन उपर कहा वैसे पुरुष - श्रात्मा की स्तुति का सूचक है, परन्तु कर्म की वस्तुस्थिति का निषेधक नहीं । अन्यथा कर्म - प्रतिपादक 'पुण्यं पुण्येन कर्मणा, पापः पापेन' श्रादि श्रन्य वेद-वाक्य गलत सिद्ध होंगे। इसी तरह जैसा पूर्व में कहा गया वैसे बिना कर्म अकेला पुरुष-तत्त्व कहने से पदार्थ-संगति नहीं होती । महावीर प्रभु की इस समझाइश से श्रग्निभूति गौतम भी प्रतिबोधित ये और उन्होंने ५०० विद्यार्थियों के साथ प्रभु की शरण में दीक्षा ग्रहण की । € For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128