________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्वितीय गणधर-'कर्म संशय'
अब दूसरे गणधर की चर्चा प्रारम्भ होती है। इन्द्रभूति की दीक्षा के समाचार सुनते ही अग्निभूति चौंक उठे,–'हैं ? यह क्या ? मेरा भाई जो कभी किसी से हारता नहीं. वही विपक्षी वादी के प्राजन्म शरणागत हो गया !! जरूर कुछ छल हुआ है; तो मैं अब पहिले से ही समझ बूझ कर वहां जाऊँ, और वादी की जाल में न फंस कर उसको निरुत्तर कर के भाई को छुड़वा लाऊँ';-ऐसा सोच कर अपने ५०० विद्यार्थी-समुदाय के साथ आप प्रभु के पास आए।
___ इन्हें कहां पता था कि 'अकेले भाई ही क्या, यहां तो बड़े अवधिज्ञानी इन्द्र भी मोहित हो जाते हैं ऐसे विश्व-श्रेष्ठ तीर्थ करपद पर ऐसे वीतरागसर्वज्ञता पद पर भगवान आरूढ़ है आप भी यहां आएं, इतनी ही देर है। प्रभु आपको नहीं, आपके शत्रु मोह को ठगने के लिए यहां पधारे हैं। अग्निभूति प्रभु के समवसरण में पाए और इन्द्रभूति जी की भांति प्रभु ने इन्हें संबोधित किया और मन का संशय कहा कि 'तुम्हें इस बात की शंका है कि कर्म जैसी वस्तु जगत में होगी क्या ? परन्तु वेद वाक्य का अर्थ तुमने बराबर समझा सोचा नहीं?'
बस भाई की भांति अग्निभूति भी ठंडे हो गए। सही लगा कि 'ये सर्वज्ञ हैं, अतः अब तो बराबर समझ लू।' विनयपूर्वक प्रभु के सम्मुख अंजलि बांध कर खड़े रहे।
अग्निभूति को प्रभु ने इस प्रकार समझाना शुरु किया ।
For Private and Personal Use Only