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नहीं होने पर भी छप्पर से पार निकलते हुए धुएं को देखकर अनुमान से मानी जाती है, इस प्रकार शास्त्रादि प्रमाणों से प्रात्मा भी मान्य है ।
ऐसा अगर आप अनुमान प्रमाण दें, किन्तु
अनुमान प्रमाण से भी प्रात्मा का ज्ञान नहीं होता। अनुमान तीन प्रकार से होता है :
(१) कारण-कार्य अनुमान:- जैसे चींटी के पैर, धूल में चकवी की क्रीड़ा प्रादि लक्षणयुक्त घनघोर काले बादल वर्षा के सूचक हैं। इन पर कृषक वर्षा रूपी कार्य का अनुमान करते हैं। इसी प्रकार सुलगते हुए चूल्हे पर उबलते हुए पानी में डाले हुए चावल को देखकर भात तैयार होने का अनुमान होता है। युद्ध भूमि पर प्रामने सामने दो शत्रुओं को सेनाएं देखकर युद्ध का अनुमान होता है, और पश्चिम की ओर सूर्य को अधिक ढला हुआ देखकर अस्त होने की तैयारी का अनुमान होता है।
(२) काय-कारण अनुमानः-जैसे धुपा अग्नि से उत्पन्न होने वाला कार्य है । अग्नि इसका कारण है जिससे कार्य-धुपा देखकर कारण-अग्नि का अनुमान होता है। इसी प्रकार पुत्र को देख कर कारणभूत पिता का अनुमान होता है।
(३) सामन्यतो दृष्ट अनुमानः-पहले दो अनुमान 'पूर्ववत्' व 'शेषवत्' हए । अब 'सामन्यतो दृष्ट';--जहां दो वस्तुएं एक दूसरी की कार्य कारण नहीं होती परन्तु साथ साथ रही हुई होती हैं; एक दूसरी में व्याप्त होती हैं, वहां एक को देख कर दूसरी का अनुमान होता है जैसे रस रूप (वर्ण) के साथ ही रहता है तो घास में पकने के लिए डाली हुई केरो का अंधेरे में मधुर मधु जैसा रस चख कर अनुमान होता है कि केरी पक गई होगी। इसी प्रकार कुत्ते के भौंकने प्रादि के प्रावाज से गांव का अनुमान लगाया जाता है।
यह सब लिङ्ग पर लिङ्गो का, अथवा हेतु पर साध्य का अनुमान गिना जाता है। धुए प्रादि को देखकर जो अनुमान लगाया जाता है उसे 'हेतु'
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