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आत्मसिद्धि के अनुमान प्रमाण प्रश्न-संशय, ऊहापोह, निर्णय प्रादि जो संवेदन हृदय में म्फुरित होते हैं यह प्रात्मा के संबंध में प्रत्यक्ष प्रमाण है तब फिर अनुमान से प्रमाणित करने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-जो शून्यवादी जैसा कहते हैं कि ये सब संशय, निर्णय आदि स्फुरित होने वाले संवेदन मिथ्या है, प्रसत् है, तो इस हिसाब से तो प्रात्मा भी असत् सिद्ध होती है। अतः अनुमान से प्रात्मा की सिद्धि करना आवश्यक है । ये अनुमान इस प्रकार हैं :
(१) किसी भी शरीर में भिन्न प्रात्मा है यह सिद्ध करने के लिए अपनी तरह दूसरों की प्रवृत्ति निवृत्ति पर से ऐसा अनुमान होता हैं कि इनके शरीर को प्रवृत्त निवृत्त बनाने वाली प्रात्मा इसके अन्दर हैं। जिस प्रकार घोड़े से गाड़ी चलती है, उसी प्रकार शरीर भी हलन-चलन-भाषणादि में प्रवृत्ति
और उनसे निवृत्ति प्रात्मा से ही करता है और मृत्यु होने पर शरीर में से प्रात्मा निकल जाने पर अश्व विहीन गाड़ी जैसे शरीर में स्वतः जरा भी इष्ट प्रवृत्ति द्वारा संचा या अनिष्ट निवृत्ति नहीं होती। यह है अनुमान प्रयोग-शरीर ऐसे किसी के लित है जो कि शरीर में विद्यमान होने तक ही शरीर प्रवृत्तनिवृत्त होता रहताहै । जैसे,—अश्व-संचालित रथ ।
प्रश्न-जैसे सर्प स्वयं ही संकुचित हो जाता है वैसे ही शरीर स्वयं ही प्रवृत्ति-निवृत्ति करने में समर्थ नहीं है क्या ? इसमें प्रात्मा की आवश्यकता है।
__उत्तर–सर्प भी जीवित अवस्था में ही संकुचित हो सकता है, न कि मृतावस्था में। इससे पता चलता है कि वहां भी अंदर बैठी हुई पात्मा ही काम कर रही है। मन चाहे तब दृष्टि चलाना, दृष्टि को रोकना, छींकना, छींक रोकना, हाथ पांव हिलाना-रोकना आदि की शक्ति जड़ शरीर की कैसे कही जा सकती है ? प्रवर्तक-निवर्तक तो प्रात्मा ही है ।
यहां पहिले बताया गया है कि अनुमान करना हो तो साध्य हेतु का
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