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पैसे रोगी के पुत्र के लिए खर्चे जाते हैं, क्यों कि पैसों की अपेक्षा पुत्र अधिक प्रिय है। परन्तु पुत्र की अपेक्षा पत्नी अधिक प्रिय होने से यदि उसे पुत्र अथवा पुत्र वधु की अोर से क्लेश हो तो पुत्र को तुरन्त अलग किया जाता है। पर सोचो यदि मकान में भयंकर अग्नि लग जाए, पति पहली मंजिल पर हो, पत्नी चौथी मंजिल पर हो और पति जरा भी रुके तो जलकर भस्म होने का भय हो, तो क्या पति पत्नी को लेने के लिए ऊपर जाएगा ? नहीं, बाहर कूद पड़ेगा, क्यों कि पत्नी अति प्रिय तो हैं परन्तु उसकी अपेक्षा अपना शरीर अधिक प्रिय है। इससे भी आगे बढ़ते हैं । बहू सास की यातनाओं से उकता कर वह अपने शरीर को भी जला कर भस्म कर देती है, तब वह अपना शरीर भी जाने देना किसके लिये ? शरीर से भी प्रियतर कौन है ? उत्तर मिलता हैप्रात्मा । 'अपने न यह देखना न दुःखी होना; चलो मरें (अर्थात् शरीर त्याग दें)' ऐसा जो बहू सोचती है इसमें 'अपने' अर्थात् कौन ? आत्मा ही न, जो नित्य प्रति के क्लेश से बचने के लिए शरीर को जाने दे ?
(२३) दूसरे का स्नेह भाव-आदर, सद्भाव प्रिय लगता है, झगड़े टंटे, क्लेश, ऊंचा मन आदि प्रिय नहीं लगते । किसे ? अात्मा को। शरीर का तो कोई लाभालाभ होता नहीं। किसी का शरीर यानी मुह हंसता हुआ देखते हैं फिर भी कहते हैं, 'यह दंभी है, भीतर से अप्रसन्न है' यह कैसे ? शरीर में 'भीतर से' अर्थात् क्या ? 'प्रात्मा के' तभी कहा जाय कि वस्तुतः यह अप्रसन्न है, मुह हंसता हुअा बताता है इतना ही।
(२४) वर्तमान काल में किसी जीव को पूर्व जन्म का स्मरण हुआ मालूम पड़ता है । वह जोव कहता है कि पूर्व भव में मैं उस स्थान पर था, मेरी यह दुकान और मेरे ये पुत्रादि थे। उनमें से अभी भी ये मौजूद हैं। इसमें मैंने पहिले ऐसा ऐसा व्यवहार किया'- यह सब मिलता भी प्राता है तो यह 'मैं' 'मेरे' 'मैंने' प्रादि कौन ? प्रात्मा ही कहना पड़ेगा कि जो यहां पूर्व भव से पाया उस का स्मरण करता है । यहां का शरीर पूर्व भव का नहीं । उपसंहार :
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