Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhanuvijay
Publisher: Jain Sahitya Mandal Prakashan

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___३१ देशीय होता है । यहां प्रांख से अदृश्य तत्त्व की एकदेशीय तुलना है । अर्थापति प्रमाण से भी प्रात्मा सिद्ध होती है क्योंकि जैसे महीनों तक दिन में बिल्कुल न खाने वाले देवदत्त का शरीर पुष्ट दीखता है वहां रात्रि भोजन के बिना शारीरिक पुष्टता घट नहीं सकती; इसी प्रकार मृत्यु के पश्चात् तुरन्त ही जरा भी हलचल करने से असमर्थ शरीर में मृत्यु से पूर्व जो हलचल दिखाई देती है वह जीव की स्थिति के बिना अर्थात् शरीर में गुप्त प्रात्मा की मौजूदगी के बिना नहीं हो सकती । इस प्रकार अर्थापत्ति से प्रात्मा सिद्ध हैं । __संभव प्रमाण–से भी प्रात्मा सिद्ध है ऐसा कह सकते हैं, क्योंकि संभवप्रमाण एक प्रकार का अनुमान है । जैसे १०० में ५०-५० का योग है । इससे किसी के पास सौ हैं ऐसा जानने के पश्चात् यह अनुमान होता है कि उसके पास पचास तो हैं ही। इस प्रकार बालक की जन्म-समय दिखाई देती इष्ट वृत्ति, चैतन्य-स्फुरण आदि कार्यों के पीछे कुछ अदृश्य हेतु सिद्ध होते हैं। प्रात्मा इन अदृश्य वस्तुओं में से एक हैं, इस प्रकार संभव प्रमाण से कहा जाता है कि वहां प्रात्मा हेतुरूप तो है ही। - ऐतिह्य प्रमारण में विद्वान लोगों से तो आत्मा को मान्यता चली ही आ रही है परन्तु पामर जनता में भी परापूर्व से कहा जाता है कि अभी तक जीव गया नही, शरीर में जीव है'-प्रादि । यह कथन ऐतिह्य प्रमाण है। प्रागम-प्रमाण : दर्शनों के मत अब आगम प्रमाण पर विचार करें । प्रागम अर्थात् शास्त्र न्याय-दर्शन, वैशेषिक दर्शन, बौद्ध दर्शन, वेदान्त दर्शन, सांख्य दर्शन, योग दर्शन, मीमांसक दर्शन इस प्रकार षट्दर्शनों के भी मिलते हैं । जैन दर्शन के शास्त्र इस पर क्या मत और निर्णय देते हैं इसे देखें । प्रागम प्रमाण में भिन्न २ दर्शन-शास्त्र का कैसा २ स्वरूप मानते हैं इस पर विस्तृत विचार तो आगे किया जायगा, परन्तु संक्षिप्त में इतना समझना है कि For Private and Personal Use Only

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