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कोई कहता हैं कि 'प्रात्मा एक ही है' तो कोई कहता है 'श्रात्मा अनंत हैं' फिर कोई आत्मा को क्षणिक हो मानता है तो कोई नित्य ही मानता हैं । ऐसी स्थिति में कौन सा शास्त्र मानें और कैसी श्रात्मा सिद्ध हो ?
यहां तक 'आत्मा नहीं' यह सिद्ध करने का प्रयत्न हुआ अब आत्म तत्त्व सिद्ध करने की विचारणा की जाती है ।
'आत्मा है' इसके प्रमाण :
आत्मसिद्धि में प्रत्यक्ष प्रमाण :-- ( १ ) सर्वज्ञ आत्मा को प्रत्यक्ष देखते हैं । जिस प्रकार किसी मनुष्य के प्रांतरिक सदेह विकल्प इन्हें प्रत्यक्ष होते हैं। श्रौर अवसर पर व्यक्त किये जाते हैं और वे मान्य होते हैं, इसी प्रकार इन्हें प्रत्यक्ष होने वाली प्रात्मा मान्य होनी चाहिये ।
(२) अपने प्रत्यक्ष प्रमारग से भी श्रात्मा इस प्रकार सिद्ध होती है कि हमें संदेह, निर्णय, तर्क, सुख, दुःख आदि जो प्रत्यक्ष सिद्ध अनुभूत होते हैं यह आत्मा का ही प्रत्यक्ष अनुभव है क्योंकि श्रात्मा ही तन्मय है, जब कि देह तन्मय नहीं है ।
(३) 'मैं करता हूँ' मैंने किया, में करूंगा, मैं बोलती हूं, मैं बोला, मैं बोलूंगा आदि कालिक अनुभव में 'में' का अनुभव श्रात्मा का ही प्रत्यक्ष अनुभव है, क्योंकि तीनों ही काल में आत्मा तदवस्थ हैं जब कि शरीर परिवर्तित होता है । 'खाऊं तो मैं बिगडू', नहीं, किन्तु 'खाऊं तो मेरा शरीर यिगड़े,' - ऐसा अनुभव होता है; इससे 'मैं' कर के आत्मा ही सिद्ध होती है ।
( ४ ) स्वप्न में अनुभव कौन करता है ? आत्मा ही ? गहन अधकार में जहां अपना शरीर भी दिखाई नहीं देता, वहां 'मैं हूं' ऐसा अबाधित प्रत्यक्ष अनुभव आत्मा का ही है, सरीर का नहीं ।
(५) शरीर का कभी अकस्मात् रंग पलट जाने पर या यकायक निर्बलता बढ़ जाने पर संदेह होता है 'क्या यह मेरा शरीर' परन्तु कभी भी 'में' के संबंध
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